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जागे सो महावीर
बात हो सकती है, पर उसकी प्रभुता तो इस बात में है कि उसने किसी का भला किया या नहीं। आपने किसी को चाँटा नहीं मारा तो आप पाप से अवश्य बच गए , पर मूल्यवान बात तो यह है कि आपने किसी गिरते हुए को उठाया या नहीं। दुनिया उसे ही अपने सिर-माथे पर बिठाती है जिसके जीवन में गुणों की सुवास है। मूल्य इस बात का नहीं कि तुम संत हो। मूल्य इस बात का है कि तुम सच्चरित्र हो या नहीं। यदि तुम संत नहीं हो, लेकिन शीलवान, सदाचारी और गुणानुरागी हो तो दुनिया एक दिन अवश्य ही तुम्हें अपनी पलकों पर बिठाएगी। वह तुम पर उतना ही विश्वास करेगी जितना कि वह अपने माता-पिता पर करती है।
यदि व्यक्ति ऊँची बातें बखानता रहा और उसकी कथनी व करनी में कोई साम्य नहीं रहा तो वह मात्र भाषणबाजी कर तालियाँ बटोर सकता है, पर उसका जीवन किसी के लिए प्रेरणास्रोत नहीं बन सकता। आज लगभग नब्बे प्रतिशत व्यक्ति ऐसे ही होते हैं जो ज्ञान को जीते नहीं, वरन् उसका उपयोग भाषणबाजी और लफ्फाजी में करते हैं। बातों के बादशाह बहुत हो सकते हैं, पर आचरण के आचार्य बहुत कम होते हैं। आचार्य वह नहीं है जो कि प्रवचन देने में धुरन्धर हो या समाज द्वारा जिसे कोई आचार्य की पदवी दी जाए, वरन् आचार्य वह होता है जो अपने आचरण से लोगों के आदर्श और प्रेरणा का प्रकाश-स्तम्भबनता है। इसीलिए भगवान ने कहा कि चारित्रशून्य व्यक्ति का विपुल शास्त्राध्ययन भी उसी प्रकार व्यर्थ है जैसे एक अंधे के सामने हजारों दीपक जला दिए जाएँ।
एक वक्त था जब मैं किसी भी विषय पर बोल देता था, पर जब से मुझे भाषणबाजी का बोध हुआ, तब से वाणी में वे ही शब्द आते हैं जो अनुभव से फूट पड़ें। जिनको जिया नहीं, वे बातें कभी जुबान पर नहीं आतीं। जिन बातों को जिया है, उन्हें जुबान पर लाने में कोई संकोच भी नहीं होता। अपने जीवन के प्रति पूर्ण ईमानदारी से इंसाफ हो। कोई और हमारे जीवन का न्याय करे, यह उचित नहीं है। कोई दूसरा आकर हमें प्रताड़ित करे, उससे पहले ही हम अपने पर अंकुश लगा लें। अपने विकारों को, अपनी देह और चित्त में उठने वाले धर्मों को और अपने कषायों को हम स्वयं ही नियन्त्रित कर लें। जैसे कोई भेड़िया जब किसी कछुए पर आक्रमण करता है तो उसके पूर्व ही कछुआ अपने शरीर के सभी अवयवों - हाथ, पैर, कान, सिर को अपने कठोर कवच के भीतर समेट कर सुरक्षित हो जाता है।
यदि ऐसा है तो व्यक्ति का अल्पज्ञान भी सार्थक बन जाया करता है, अन्यथा चारित्र-शून्य व्यक्ति का विपुल शास्त्राध्ययन भी व्यर्थ है।
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