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सच्चरित्रता के मापदंड
मेरे प्रिय आत्मन् !
भारतीय मनीषा ने जीवन के विकास और उसकी व्यवस्था के लिए अपना एक मौलिक जीवन-विज्ञान प्रस्तुत किया है। इस विज्ञान को उन्होंने अपनी भाषा में 'आश्रम' कहा। आश्रम का अर्थ है वह स्थान जहाँ कि व्यक्ति को आश्रय मिल सके। मैं जिस अर्थ में आश्रम का उपयोग कर रहा हूँ, वह स्थानवाचक नहीं, गुणवाचक है, स्थितिवाचक है। यह अलग बात है कि आने वाले कल में यह व्यवस्था खंडित भी हो जाय लेकिन आज हजारों साल बाद भी वेदों द्वारा दी गई आश्रम-व्यवस्था का मैं जिक्र कर रहा हूँ क्योंकि इस व्यवस्था के पीछे हमारे ज्ञानी पुरुषों का विशाल दृष्टिकोण और गहरी सूझबूझ विद्यमान है।
ब्रह्मचर्य आश्रम वह आश्रम है जिसमें शिक्षण का उद्देश्य होता है। अर्थ और काम की साधना के लिए गृहस्थ आश्रम है। वानप्रस्थ आश्रम में व्यक्ति अपना जीवन धर्म को आत्मसात् करने में लगाता है। शेष जीवन में व्यक्ति मरणोपरान्त मिलने वाली गति के लिए सर्वतोभावेन प्रयास करे, अपनी भावी गति को सद्गति में बदल सके, यही संन्यास आश्रम है।
__ जीवन जीने के लिए ये चार चरण हैं। पहले चरण में शिक्षण का प्रबन्ध होता है। फिर व्यक्ति का गृहस्थ-जीवन में प्रवेश होता है ताकि वह अपने तथा अपने परिवार की सेवा-शुश्रूषा और उनकी सार-संभाल के लिए पुरुषार्थ कर सके।
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