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मिथ्यात्व-मुक्ति का मार्ग
मेरे प्रिय आत्मन् ! ___ मैं देख रहा हूँ उस सज्जन को जो गवाक्ष में बैठा हुआ राजमार्ग से गुजरते हुए राहगीरों को देख रहा है। रास्ते पर चलते मुसाफिरों और उनकी हरकतों को निहारते हुए उस व्यक्ति की पलकें झुक गई हैं। वह पहले तो बाहर के मुसाफिरों को देख रहा था, किन्तु अब वह अपने भीतर में विचारों के राहगीरों को देखने लगा है। विचारों और मन की दशाओं को देखते-देखते वह इतना गहरा उतर गया है कि उसे अपने अतीत की फिर से याद हो आई है। उसने देखा कि वह अतीत में संन्यस्त होकर सद्गुरु के द्वार पर खड़ा है। इतने में उसके पिता सद्गुरु के पास पहुँचे और बोले – 'महात्मन्, आपने जीवन में साधना की परिणति को उपलब्ध किया है। क्या आपके शिष्य-समुदाय या स्नेहीवर्ग में ऐसा कोई व्यक्ति है जो धरती के इतिहास का स्वर्णिम हस्ताक्षर बने?' __सद्गुरु मुस्कराए और बोले – 'तुम दूर क्यों जाते हो? तुम्हारा यह पुत्र ही इतिहास का स्वर्णिम अध्याय बनेगा।' पिता बहुत गौरवान्वित हुए। वे उसके पास आए और बोले - 'पुत्र मुझे तुम पर गर्व है। धन्य है मेरा कुल कि मैंने तुम्हें पाया। भविष्य में तुम्हारे द्वारा सदाचार और सद्विचार की सरिता प्रवाहित होगी। तुम भी आने वाले समय में चक्रवर्ती, बुद्ध या तीर्थंकर जैसा महान् पद प्राप्त करोगे।' वह व्यक्ति सोच रहा है कि जब मैंने यह सब सुना तो मुझे अभिमान हो आया और मैंने
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