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________________ बात इतनी-सी है कि हम अज्ञान तजकर ज्ञान की ओर बढ़ें, अबोध-दशा को छोड़कर बोध-दशा की ओर बढ़ें, ताकि हमारे चित्त के क्लेश-संक्लेश दूर हो सकें। हमें प्रतिदिन सत्संग और स्वाध्याय करने की सीख अपने जीवन से जोड़नी चाहिए। ज्ञानीजनों का सान्निध्य मिले, तो उनके पास बैठकर सत्संग करना चाहिए। ऐसा अवसर न हो, तो ख़ुद ही अच्छी पुस्तकें पढ़ने की, स्वाध्याय करने की आदत जीवन के साथ जोड़ लेनी चाहिए। शरीर के पोषण के लिए तो हम दिन में दो-पाँच बार चाय-नाश्ता-भोजन ले लेते हैं, पर बुद्धि के पोषण के लिए हम ध्यान कहाँ देते हैं? बचपन तो हमने शिक्षा और ज्ञान को समर्पित किया, पर यौवन में उस ज्ञान का संस्कार क्यों नहीं रखते? ज्ञान तो हमारे जीवन का प्रकाश है, हमारी शक्ति है । ज्ञान तो अंधे की आँख है। बिना ज्ञान का इंसान तो अंधा ही है। हम ज्ञान को तवज्जो दें। यदि आपके पास ज्ञान है, यदि आप शिक्षित हैं, तो दूसरों को ज्ञान का प्रकाश बाँटें । यह ईश्वर का कार्य है। अच्छे विचारों को, अच्छी रोशनी को दुनिया में बाँटो । ज्ञान जितना बढ़ेगा, दुनिया से आतंक, उग्रवाद, स्वार्थ, छल उतने ही कम होंगे। अज्ञानी लोग ही ग़लत काम करते हैं। हम ज्ञान को महत्त्व दें।अपने बच्चों में भी ज्ञान के पुष्प खिलाएँ। __ज्ञान विनम्रता का पोषक होता है, विद्या ददाति विनयम - विद्या विनय देती है। हम अहंभाव की बजाय नम्रता की ओर अपने कदम बढ़ाएँ। अहंभाव से क्रोध आ जाता है, कषाय उत्पन्न हो जाते हैं, मदहोशी छा जाती है, दूसरों की उपेक्षा और अपमान कर बैठते हैं। ये अवगुण हमसे दूर हों। आज हमने सीखा कि ज्ञान को, शिक्षा को, बुद्धि बढ़ाने को महत्त्व दें। ज्ञानपूर्वक जीने को महत्त्व दो। अहंभाव से जुड़े चित्त के क्लेश-संक्लेश को दूर करने के लिए विनम्रता, मुस्कान, शांति, आनन्ददशा जैसे भावों को महत्त्व दें। हर व्यक्ति स्वयं को अच्छा बनाए। योग हमें अच्छा बनाता है, योग आनन्ददाता है। योग हमारे लिए रास्ता खोलता है, पर तभी जब हम अपनी बंद खिड़कियों को खोलेंगे, अपनी आँखें खोलेंगे और अपने हृदय को वैसा करने के लिए प्रस्तुत करेंगे। आज अपनी ओर से इतना ही अनुरोध करता हूँ। प्रेमपूर्वक नमस्कार। 80 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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