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________________ जग गई कि यह शरीर तो नाशवान है, सबका शरीर तो जल ही जाना है । ओह, मैं व्यर्थ ही अपनी पत्नी और बच्ची के मोह में उलझा हुआ हूँ। मेरे माता-पिता मेरे मोह उलझे हुए थे, मुझे निकलना चाहिए। मुझे मोह की जंजीरों को काटना होगा, और उस ओर बढ़ना होगा जहाँ मुक्ति का स्वाद मिलता हो । महावीर निकल गए। उन्हें ठोकर लगी । भर्तृहरि को ठोकर लगी अमृतफल से । वह अमृतफल जो उन्हें किसी सौदागर ने दिया था कि अपने किसी प्रिय को देना। अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करने वाले भर्तृहरि ने वह फल पत्नी को दे दिया। पत्नी का प्रेम महावत से था, उसने महावत को दे दिया । महावत का प्रेम गणिका से होता है । गणिका ने फल पाकर सोचा - मैं अभागिन इस अमृतफल को खाकर क्या करूँगी? इसका सही हकदार तो हमारा नेक - नीयत राजा है। फल लौटकर भर्तृहरि के पास आ जाता है । भर्तृहरि चौंक गए, उस फल को देखकर उन्हें ठोकर लगी- अहो, जिस पत्नी के लिए मैं दिन-रात बेचैन रहता था, मैं नहीं जानता कि वह तो मुझ से इतनी विरक्त है ! ठोकर ! ज़िंदगी में इंसान को ठोकर लगनी ही चाहिए ! एक ठोकर अठारह पुराणों से कहीं ज़्यादा ताक़त रखती है । हे प्रभो ! तू इंसान को ज़िंदगी में एक ठोकर अवश्य दे । पुस्तकें पढ़कर ज्ञानी नहीं हुआ जा सकेगा, सत्संग सुनने से भी व्यक्ति ज्ञानी नहीं होगा । उसे ज्ञान तभी होगा जब जीवन में कोई बड़ी ठोकर लगेगी। वह अज्ञानी और मूढ़ है जो ठोकर खाकर भी नहीं जगता। वह बार-बार एक ही पत्थर से ठोकर खाता रहता है, फिर भी नहीं संभलता । ज्ञानी वही है जो एक बार की ठोकर से संभल जाता है और अज्ञानी बार-बार ठोकरें खाया करता है। ठोकरें ही इंसान को जगाती हैं, इंसान की ज़िंदगी बदलती हैं। जिसने अपनी ज़िंदगी में जितनी ठोकरें खाई वह उतना ही पका हुआ घड़ा कहलाएगा। हर ठोकर अपने आप में एक वेद है, एक पुराण है, एक कुरआन है। ठोकर एक जीता-जागता शास्त्र है। ठोकर अपने आप में एक गुरु है। समझदार व्यक्ति या तो ख़ुद ठोकर खाकर संभल जाता है या दूसरों को ठोकर खाते देखकर उनसे जीवन की समझ ले लेता है । जो ठोकर खाकर भी न संभले, ठोकर-पर- -ठोकर खाता जाए, उसे अज्ञानी न कहेंगे तो और क्या कहेंगे? वह अज्ञानी भी है और मूर्च्छित भी। इस दुनिया में तो जो जागे सो ही जागे, बाकी तो सब सोए ही रहे । सोए भी ऐसे कि कुंभकर्णी निद्रा टूट ही न पाई । ठोकर तात्कालिक होती है। ठोकर लगते ही आप बदल गए तो बदल गए वरना सोचते रहे तो कभी कुछ नहीं हो पाएगा। हमारे यहाँ एक शब्द है - 'मसानिया बैराग।' बड़ा ज़बर्दस्त शब्द है यह । जब श्मशान में किसी को फूँकने जाते हैं तब तो देह की नश्वरता और संसार की असारता की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, कुछ विरक्ति 63 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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