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________________ तरीका हुआ, मैं तो जानकारी चाहता था, मेरा तो प्रश्न ही आध्यात्मिक था, मुझे आध्यात्मिक जिज्ञासा थी कि मैं जानूँ मैं कौन हूँ, प्रश्न का उत्तर तो दिया नहीं, धक्के मारकर बाहर कर दिया। वह मुख्य गुरु के पास गया और उनसे शिकायत की, भन्ते! मैंने आपके शिष्य से पूछा कि मैं कौन हूँ, इसका ज्ञान देने के बजाय उन्होंने मुझे धक्के मारकर बाहर निकाल दिया।गुरु उसकी बात सुनकर हँसा और कहा - मेरे शिष्य ने बिल्कुल ठीक किया।क्योंकि तुम्हारा सवाल ही ऐसा था। उस व्यक्ति ने कहा- मैंने ऐसा कौन-सा सवाल कर दिया? गुरु ने कहा- मूर्ख, जो सवाल तुझे ख़ुद से करना चाहिए था वह तू मेरे शिष्य से पूछ रहा है? भला इस प्रश्न का ज़वाब मेरा शिष्य कैसे दे सकता है? जानना है स्वयं को और पूछ रहे हो दूसरे से? समस्या यही है कि हम स्वयं से नहीं पूछते। गुरु ने कहा - इस सवाल का ज़वाब चाहते हो तो एकांत में जाकर बैठो और पलकें झुकाकर भीतर की आँखों को खोलो और ध्यानस्थ होकर यह सवाल तब तक स्वयं से करते रहो जब तक तुम इस सवाल के जवाब से संतुष्ट न हो जाओ। __ हम सभी वृत्तियों के व्यूहचक्र में उलझे हुए हैं । हरेक व्यक्ति स्वयं से ही बँधा और घिरा है। संसार के सभी संबंध इन घेरों के चलते ही निभाए जाते हैं वरना कौन किसका? जन्म के साथ माता-पिता हो सकते हैं, लेकिन पत्नी कब आई, पति कब आए? पति-पत्नी तो बीच का संयोग है लेकिन हम उन संबंधों को ढोते रहते हैं। ये संबंध वृत्तियों का मोहजाल और चक्रव्यूह है। इसमें व्यक्ति घुस तो जाता है लेकिन चाहकर भी बाहर नहीं निकल पाता। कितनी अजीब बात है, व्यक्ति शादी तो पच्चीस वर्ष की उम्र में करता है लेकिन ताउम्र उस संबंध को निभाता और ढोता रहता है। ___भगवान महावीर का एक सिद्धांत है- लेश्या अर्थात् वृत्तियाँ । मन की, वाणी की, काया की वृत्तियाँ जो हमें अपने घेरे में घेर ले, लेश्या है। अच्छी और बुरी दोनों प्रकार की वृत्तियाँ हो सकती हैं। महर्षि और महान पुरुष जो भी हुए हैं - वे स्वयं की मुक्ति का मार्ग देखते हैं और हम सांसारिक प्राणियों को भी वह मार्ग देते हैं। मार्ग यही है कि व्यक्ति भीतर की वृत्तियों और संस्कारों के जाल से कैसे बाहर निकले। ____ व्यक्ति तभी बाहर निकल पाता है जब जीवन में कोई बड़ी ठोकर लगे। वह ठोकर जो उसकी आत्मा को जगाए, उसके दिल को बदले, यहाँ तक कि उसके स्वभाव में प्रवेश कर जाए। महावीर का विवाह हुआ, उनके बच्चे भी हुए, लेकिन महावीर ने जब अपने माता-पिता की चिताओं को देखा तो उनकी सोई हुई चेतना 62/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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