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________________ योग का विज्ञान इतना ही है कि आसक्ति छोड़ो, अनासक्ति का अमृतपान करो। ज़मीन पर रहो, पर ज़मीनों में उलझ मत जाओ।परिवार में रहो, पर परिवार के ही होकर मत रह जाओ। हमें कमल के फूल को हमेशा याद रखना चाहिए जो पानी में रहता है, मिट्टी के गारे में रहता है, फिर भी उससे ऊपर रहता है। यह जो ऊपर उठना है, इसी का नाम अनासक्ति है। यह अनासक्ति ही हमारे लिए मोक्ष का द्वार है। ज़्यादा हस्तक्षेप मत करो, ज़्यादा टोकाटोकी मत करो, ज़्यादा झुंझलाहट मत पालो। सहजता से जीओ। होनी को हो लेने दो। तुम होनी के हमसफ़र हो जाओ। ज़्यादा मीनमेख निकालोगे, ज़्यादा नुक्ताचीनी करोगे तो तय है कि तम्हें प्रतिसंघर्ष ज़्यादा करना पड़ेगा। तुम दूसरों की आलोचनाओं और आक्रोशों के ज़्यादा शिकार बनोगे। तुम्हारे भाग्य का कौर कोई और नहीं ले सकता तथा किसी और के भाग्य का कौर तुम नहीं छीन सकते, फिर क्यों ख़ुद को उलझाते हो। सहज रहो, सहजता से जिओ। ___ आपने हाकुइन की कहानी सुनी है - एक बार दो संत नदी किनारे से जा रहे थे। उन्होंने नदी किनारे के कीचड़ में फँसी हुई एक युवती को देखा। उन्होंने देखा कि वह युवती जितना बाहर निकलने का प्रयत्न करती उतनी ही कीचड़ में उलझती जाती।आख़िर उस युवती ने उन जाते हुए संतों से गुहार की कि उसका हाथ थाम लें ताकि वह फिसलन भरी कीचड़ से बाहर निकल सके। पहले संत ने इनकार कर दिया और कहा कि यह उसके संन्यास के विरुद्ध है। वह किसी महिला को स्पर्श नहीं कर सकता। इसलिए उसका हाथ नहीं पकड़ सकता। ऐसा कह कर वह आगे बढ़ गया। पीछे जो दूसरा संत आ रहा था - वह हाकुइन था। उससे भी महिला ने अनुरोध किया कि महात्माजी! आप इधर से जा रहे हैं, ज़रा मेरा हाथ पकड़ लें और मुझे इस कीचड़ से बाहर निकाल दें। आगे नदी गहरी है, मैं ड्रब जाऊँगी। संध्या का समय हो रहा है, मैं अकेली हूँ।संत ने कहा, 'ठीक है, लो मेरा हाथ पकड़ो और बाहर आ जाओ।' युवती ने हाथ पकड़ा और उठ खड़ी हुई, लेकिन फिसलन भरे कीचड़ का रास्ता बहुत लम्बा था। युवती संत का हाथ पकड़ आराम से चलने लगी और संत ने प्रेमपूर्वक वह रास्ता पार करवा दिया। आगे नदी आ गई। युवती का कद छोटा था। संत ने कहा, 'घबराओ मत, मैं तुम्हें उठाकर अपने कंधे पर बिठा लेता हैं और इस तरह हम नदी पार कर लेंगे।' संत ने उसे नदी पार करवा दी।युवती अपने गाँव चली गई और हाकुइन अपनी यात्रा पर। | 55 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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