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हम क्लेशकारी वृत्तियों का क्षय करते हैं।
___ मैंने सुना है - एक शिक्षक भगवान की खोज के लिए निकल पड़ा। वह स्वर्गलोक को खोजता हुआ काफ़ी भटकने के बाद आख़िर स्वर्ग के द्वार पर पहुँचा।
द्वारपालों ने शिक्षक को रोक दिया और पूछा – 'तुम कौन हो?' जवाब मिला - 'मैं एक शिक्षक।' द्वारपाल ने कहा, 'ठहरो, प्रभु से पूछकर आता हूँ।' थोड़ी देर में द्वारपाल लौटकर आया और कहा, भगवान कहते हैं कि शिक्षक के लिए स्वर्गलोक में कोई जगह नहीं है क्योंकि तुमने शिक्षा के रूप में केवल व्यापार किया है।'
शिक्षक वापस लौटने लगा कि तभी उसे एक दैवीय आवाज सुनाई दी, 'हे शिक्षक! मृत शब्दों और अहंकार की धूल तुम्हारे जिगर से चिपकी हुई है, मौन और ध्यान रूपी जाल से इस धूल को धो डालो, तुम्हें भगवान के दर्शन स्वतः मिलेंगे।'
शिक्षक अपने भीतर की गहराई में उतर गया, तभी उसने फिर से एक दैवीय आवाज सुनी, शिक्षक मित्र होता है, अपने सहयोगियों का, विद्यार्थियों का, पशुपक्षियों का, समग्र मानव-जाति का। एक सच्चा शिक्षक प्रभु की सारी सृष्टि की सेवा करता है। यह सुनते ही शिक्षक का हृदय भर आया। उसने कहा, 'हे प्रभु! मुझे आशीर्वाद दो कि आज से मैं शिक्षा की सच्ची सेवा कर सकूँ। अपने सहयोगियों व विद्यार्थियों, पशु-पक्षियों और सम्पूर्ण मानव-जाति का मित्र बन सकूँ। आज से मैं आपकी सच्ची संतान बनकर धरती पर लौट रहा हूँ और शिक्षा की सेवा को आपकी ही सेवा मानता रहूँगा।'
उसने दो क़दम धरती की ओर बढ़ाए ही थे कि तभी स्वर्ग का दरवाजा खुल गया। प्रभु ने दर्शन दिए, आशीर्वाद दिया और कहा, 'जो अपने अंतर्मन को स्वार्थ, लोभ और अहंकार से मुक्त करके मेरे कार्य में मेरा सहयोग करता है मैं उसी से प्यार करता हूँ। तुम्हारा हृदय शुद्ध हुआ, तुम धरती पर जाओ और मेरे कार्य में सहयोग करो, तुम्हें मेरा आशीर्वाद है।'
पतंजलि कहते हैं, जहाँ हृदय शुद्ध है वहीं योग है।' हम लोग ध्यान के पथ पर चलकर अपने हृदय को शुद्ध करते हैं और श्री भगवान को अपने हृदय में, अपनी आँखों में बसाते हैं।
पतंजलि के सूत्र हैं - अभ्यास वैराग्याभ्याम् तन्निरोधः। अविद्या-अस्मिताराग-द्वेष-अभिनिवेशा: क्लेशाः।ध्यानयेः तद् वृत्तयः।
अभ्यास और वैराग्य से चित्त-वृत्तियों का निरोध होता है। अविद्या, अस्मिता
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