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________________ 1 बोध के तल पर, ज्ञान के तल पर, शांति के तल पर जो हमें अपने आपसे जोड़ता हैवही योग है । स्वस्थ होना वास्तव में क्या है? जो स्व में स्थित कराए वही है स्वस्थ । अपने-आप में निवास करने का नाम स्वास्थ्य है। उपवास का अर्थ चौबीस घंटे भूखे रहना या अन्न-जल का त्याग करना नहीं अपितु अपने-आप में निवास करना ही उपवास है । जिस प्रकार दिन भर भटकता हुआ पंछी संध्याकाल में अपने नीड़ पर वापस आ जाता है उसी तरह भटकती हुई चेतना जब वापस अपने आप में लौटकर आ जाती है- इस लौटने का नाम है योग । इसी योग को कोई प्रत्याहार कहता है, कोई प्रतिक्रमण । कुल मिलाकर यह अपने-आप से अपनी दोस्ती है, स्वयं से अपनी मुलाकात है, स्वयं से प्रेम है, स्वयं सुधरने का तरीका है। इसलिए जब आप योग करते हैं तब स्वयं को दुरुस्त करने का पुरुषार्थ कर रहे हैं। जब योग कर रहे हैं तब सजग होकर अपने दिमाग को शांतिमय बनाने का, तनावमुक्त करने का उपक्रम कर रहे हैं । 1 प्राणायाम और योग करते हुए व्यक्ति अपने दिमाग, मन, चित्त को विश्राममय और शांत बनाते हुए तनावमुक्त करता है । विचारों और विकल्पों को शांत व विश्रामपूर्ण करने का प्रयत्न करता है। जब हम ऐसा कर रहे हैं तो अपने-आप से जुड़ रहे हैं । विकार, वासनाएं, क्रोध तो बाहरी तत्त्व हैं। एक योगी व्यक्ति तो स्वयं को भी अपने शरीर से विभिन्न देखता है । जैसे-जैसे योग की, साधना की गहराई आती है व्यक्ति का मन शांत और निर्मल होता जाता है। वह घड़ी दो घड़ी, आधा - एक घंटे के लिए एकांत में बैठकर अपने श्वास - धारा को शांत व मंद करते हुए अपने मन को शांत, निर्मल और एकाग्र करने का प्रयास करता है। योग अर्थात् Relexation of mind. योग हम सभी के लिए कल्याणकारी है, फिर चाहे हम विद्यार्थी हों, व्यवसायी हों, गृहणी हों या किसी भी पेशे से जुड़े हों। आज के समय में जबकि सभी अत्यधिक मानसिक दबाव व तनाव से घिर रहे हैं योग अत्यन्त आवश्यक हो गया है । पेशेंगत समस्या हो या अध्ययन का बोझ, सबसे मुक्ति पाने का सहज, सरल व सुगम उपाय योग है। योग के द्वारा हम स्वयं को ठीक करते हैं, उत्साहपूर्ण बनाते हैं, ऊर्जावान बनाते हैं । भीतर के विकार, वासनाएँ, जड़ताएँ, मोह-मूर्च्छा सभी को शांत व विश्रामपूर्ण बनाते हैं। इस तरह हम स्वास्थ्य से समाधि की यात्रा का प्रारम्भ करते I हैं । महर्षि पतंजलि जिन्होंने योग सूत्रों को व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत करते हुए हमारे सामने ऐसी प्रकाश-किरण थमाई है कि जिसे सैद्धांतिक रूप से समझने पर भी 36 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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