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________________ और बाबा से पूछा - 'तुम कौन हो?' बाबा ने कहा - 'हम क्या बताएँ कि हम कौन हैं, पर तुम चोर हो तो हम भी चोर हैं। तुम भी चुराने का काम करते हो, हम भी चुराने का काम करते हैं, बस थोड़ी-सी दशा और दिशा का फ़र्क है। 'तो चलो चोरी करते हैं - चोरों ने कहा। 'चलो '- बाबा ने कहा - 'कहाँ चलें।' 'जहाँ तुम्हारा जी चाहे।''चलो' – निकल पड़े। हिस्सा कितना लोगे?' 'वहीं देखेंगे।' तीनों-चारों चल दिए। एक मकान में सेंध लगाई और सब अंदर जाने लगे तो उन्होंने बाबा को भेजना चाहा कि कुछ गड़बड़ हो तो वे निकलें। बाबा ने कहा - 'नहीं भाई, पहले आप चलो।' क्योंकि उन्हें तो चोर दिखाई ही नहीं दे रहे थे। उन्हें तो लगा कि माखन चोर आया है जो स्वयं को चोर कह रहा है। वे तो रोज़ ही माखन चोर को याद करते थे। जब सारे चोर अंदर चले गए तो बाबा भी चले गए। चोरों ने टॉर्च जलाई और अलमारी वगैरह तोड़कर धन-जेवर इकट्ठा करने लगे, पोटली बाँध ली कि तभी बाबा की नज़र सामने टंगी ढोलक पर चली गई वे तो ख़ुश हो गए। वे तो भूल ही गए कि वहाँ क्या करने आए थे। उन्होंने ढोलक उतारी और मस्ती से बजाने लगे। चोर सतर्क हो गए, उन पर चिल्लाए कि मरवाओगे क्या! बाबा ने कहा- मज़ा आ गया। जीने-मरने की कौन सोचता है और लगे ढोलक पर थाप देने।लोग इकट्ठे हो गए। वे पकड़े गए। शायद लोगों ने थोड़ा पीटा भी हो। जब उजाला हुआ तो लोगों ने देखा कि ये तो गवारिया बाबा हैं। उन्होंने पूछा - बाबा आप यहाँ क्या कर रहे हो। हमें क्या मालूम हम यहाँ क्या कर रहे थे। उन्होंने कहा चोरी करने चलना है, हमने कहा चलो और जब सामने ढोलक देखी तो हम मस्ती में आ गए - बाबा ने कहा। गवारिया बाबा तुम तो किसी घर में चोरी करने जाओगे तो तुम्हारे लिए वह भी वृन्दावन का धाम बन जाएगा। बाबा तुम्हें तो सब जगह भगवान ही दिखाई देता है - ग्रामीणों ने कहा। तभी तो हम गुनगुनाते हैं - 'कण-कण में है झाँकी भगवान की, किसी सूझ वाली आँख ने पहचान की।' जिसने भीतर के देवालय को देख लिया है, भीतर के संगीत को सुन लिया है उसके लिए तो चिड़ियों की चहचहाहट उपनिषदों कीआवाज है, कबूतर की गुटर-D में वेदों की ऋचाओं का आनंद मिलता है । हिरण के कुलांचों में कुरान की आयतें नज़र आती हैं। यह तो दिल की बात है। दुनिया में जो भी ऋषिमहर्षि, आत्मज्ञ जिनके भी पुण्य जगे, साधारण शरीर से ऊपर उठकर असाधारण चेतना के मालिक बने उनके हृदय का द्वार खुला। मन में बहुत गड़बड़ियाँ हैं - कभी क्रोध करता है, कभी तृष्णाएँ पालता है - बहुत गड़बड़ करता है, पर हृदय! कणकण में प्रभु के दर्शन करता है। बड़ा सुन्दर गीत है - | 175 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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