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पहले काययोग सधे, इस हेतु ही तो महावीर ने भी पहले पिंडस्थ ध्यान करने की प्रेरणा दी। बुद्ध भी कायानुपश्यना पर जोर देते हैं । पतंजलि भी कहते हैं कि पहले नाभि पर ध्यान धरो। नाभि पर ध्यान धरने से हमें अपने शरीर की स्थिति का ज्ञान हो जाएगा। ध्यान की एक विधि यह भी है कि व्यक्ति साँस के आवागमन से पेट पर जो प्रभाव पड़ता है, व्यक्ति पेट के फैलने और सिकुड़ने पर ध्यान धरे।
मैं भी इस बात पर जोर देता हूँ कि चित्त से साक्षात्कार करने से पहले स्वयं चित्त को शरीर के साथ एकलय कर लो।सीधे चित्त पर सचेतन होना चाहेंगे, तो यह ठहरा 'माया महाठगिनी हम जानी'। यह दो-पाँच पल में ही हमें भरमा देगा और हम कहाँ के कहाँ पहुँच जाएँगे,स्वयं हमें ही इसका बोध नहीं रहेगा। यही वजह है पहले शरीर का सचेतन ध्यान हो जाए। योग को साधने का, चित्त को साधने का फार्मूला यह है - एकांत में, शांत वातावरण में बैठो, साँसों की स्पष्ट और सचेतन अनुभूति करने लगो, साँस में प्रवेश करते जाओ, पूरी तरह डूबते जाओ। अगर ऐसा करने पर मन में लयलीनता नहीं बनती है तो साँसों के साथ ओम् के स्मरण का प्रयोग करो; ओ के सुमिरन के साथ लंबी साँस लो और म् के सुमिरन के साथ लम्बी साँस छोडो। पहले 20 लम्बी साँस, फिर 20 छोटी, फिर 20 लम्बी। ऐसे न्यूनतम 5 और अधिकतम 9 चक्र पूरे कर लो। चित्त और साँस में सहज ही एकात्मकता सध जाएगी। फिर चाहे आप षट्चक्र पर ध्यान करें,या पंच प्राणकोश पर अथवा शरीर, चित्त की अनुपश्यना करें,चित्त में भटकाव नहीं रहेगा। जैसे ही सचेतनता खंडित हो, फिर 20 लम्बी और 20 छोटी साँस का एक चक्र पूरा कर लें।
तो ध्यान से पूर्व, पहले योगासन और प्राणायाम को साधे । बिना प्राणायाम के ध्यान में सचेतनता का सधना आम व्यक्ति के लिए कठिन है। इसलिए पहले शरीर को साध लें। स्वामी रामदेव का यह देश शुक्रगुजार है कि उन्होंने योग को गुफाओं से निकाल कर व्यक्ति के स्वास्थ्य के साथ जोड़ा।आम इंसान का आत्मा, परमात्मा और अध्यात्म से सीधा ताल्लुक नहीं होता। वह तो देखता है कि उसने जो किया उसका उसकी सेहत पर क्या प्रभाव पड़ा; स्वार्थ और रोग से भरी दुनिया में अगर लगता है कि अमुक कार्य करने से हमारा रोग दूर हो जाएगा तो वह पहले उस रास्ते को अपनाएगा। गलत-सही का निर्णय करने की सोच ही नहीं रहती। केवल यही सोच रहती है कि वह ठीक हो जाए। इसलिए कहते हैं कि या तो रोगी ठगावे या भोगी। योग अच्छी विद्या है। भले ही रामदेवजी ने योग सिखाने की भी फीस ली हो, यह उनकी व्यवस्था है, पर उन्होंने योग के महत्त्व को स्थापित अवश्य कर डाला।
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