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चैतन्य महाप्रभु, सूरदास, तुलसीदास प्रभु में खो गए, प्रभु में लीन हो गए। उनकी कामनाएँ, तमन्नाएँ बदल गईं। रत्नावती ने तुलसीदास को ताना दिया था कि जितनी प्रीति तुम्हें मुझसे है अगर उतनी प्रीति तुम्हें राम से होती, जितना प्रेम तुम्हें चाम से है उतनी प्रीत राम से होती तो तुम्हारी भवभीति मिट जाती। तुलसीदास का जीवन पलट गया वे रामभक्ति में दत्तचित्त हो गए। तभी तो कहते हैं - चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर, तुलसीदास चंदन घिसें तिलक करें रघुवीर।
सूरदास जब गड्ढे में गिर गए तब ग्वाला रूप धरकर श्रीकृष्ण आ गए और कहने लगे - सूरदास मेरा हाथ पकड़ो और गड्ढे से बाहर आ जाओ। तब सूरदास ने उस हाथ को पहचान लिया और कहा - अब मैं तुम्हारे हाथ को नहीं छोडूंगा। एक बार जो तुम्हारा हाथ पकड़ लिया अब यह नहीं छूटने वाला है। उन्होंने कहा – 'हाथ छुड़ाकर जात हो निरबल जान के मोहे, हृदय से जब जाओ तो सबल मैं जानो तोहे ।' भगवान भक्त से बड़ा नहीं होता। भगवान तो रहते ही दिल में हैं और दिल देह से बड़ा तो नहीं है और उस दिल के भीतर भगवान रहते हैं। कहिए भगवान भक्त से छोटा ही हुआ न्! केवल लगन की बात है। बाहर तो एक ही सूरज उगता है लेकिन व्यक्ति जब समाधि-दशा में पहुँच जाता है तो ऐसे कई-कई सूर्यों का प्रकाश प्रगट होता है।
नानक, रैदास, शंकर आदि सभी ऋषि-मुनि-महर्षि यह कहते नहीं थकते कि इंसान के भीतर, दिल और आत्मा के भीतर अनन्त-अनन्त सूर्यों का प्रकाश है। बस, अपनी याद आ जाए। अपने कर्म को भी अपनी पूजा बना लो।हम कार्य नहीं कर रहे, हमारा प्रत्येक कर्म प्रभु को अर्पित पुष्प हो जाए। मंदिर के निर्माण की एक-एक ईंट भी प्रभु को समर्पित पुष्प बन जाए। तब वह मंदिर न होगा, वह पुष्पों का गुच्छा हो जाएगा। जो महकेगा। हर निर्माण प्रभु को अर्पित पुष्प हो। गांधी जी कहते थे - जो धन तुम्हारे पास है उसके मालिक मत बनो बल्कि ट्रस्टी बन जाओ। जो भी संपदा है उसके ट्रस्टी बनो शेष तो सब मालिक का, उसका है। सांईबाबा का प्रसिद्ध वचन है - सबका मालिक एक ।वही एक सबका मालिक है।
यम, नियम, आसन, प्राणायाम - साधना के साधन हैं। साधना-पथ के दो चरण हैं - बहिरंग और अंतरंग। यम, नियम, आसन, प्राणायाम बाहर के साधन हैं। यम अर्थात् अंकुश लगाना। हिंसा, असत्य, चोरी, व्यभिचार और परिग्रह पर अंकश। इन पाँचों पर अंकुश लगाना यम के अन्तर्गत आता है। नियम स्वयं को यम में नियोजित करना, संयम, तप, स्वाध्याय, संतोष, ईश्वर-प्रणिधान के रूप में खुद को
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