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________________ यदि शरीर में ताक़त नहीं है और कर डाले बीस आसन, तो ये आसन हमारे लिए घातक हो जाएँगे। जैसे बच्चा एकही दिन में चलना नहीं सीखता उसी तरह हमें भी धीरे-धीरे आसन क्रमशः बढ़ाने चाहिए। इसके लिए भले ही कितना भी वक़्त लग जाए। आसन करने के बाद शरीर में स्फूर्ति महसूस होनी चाहिए न कि उससे थकान आए या शरीर में दर्द हो। जीवन सरलता से, सहजता से जिएँ। यहाँ शिविर में व प्रतिदिन बीस मिनट योगासन अवश्य करने चाहिए। कई लोग तो एक घंटे तक भी योगासन करते हैं लेकिन बीस मिनट तक नियमित रूप से किया गया योगाभ्यास व्यक्ति को स्वस्थ, प्रसन्न और आनन्दपूर्ण देह-निर्माण के लिए पर्याप्त है। अपनी अनुकूलता के अनुसार समय बढ़ाया भी जा सकता है, दूसरे आसन भी किए जा सकते हैं। जैसा कि मैंने कहा जीवन वीणा के तारों की तरह है, इसे साधो । न अधिक कसो न ही ढीला छोड़ो, मध्यम मार्ग अपनाओ। बुद्ध के मध्यम मार्ग से यह अवश्य सीखो कि तारों को ज़्यादा कसा तो भी घातक है और संसारी प्राणियों की तरह ढीला छोड़ देना भी घातक है। साधक वह है जो जीवन की वीणा को, तारों को साधता है। ज्ञान की, प्रज्ञा की अंगुलियों को जीवन पर साधता है। योगासनों का हमारी प्राण चेतना के साथ सीधा संबंध नहीं है। योग का संबंध विशुद्ध रूप से हमारे शरीर के साथ है। शरीर स्वस्थ हो - यह योग का पहला और अंतिम उद्देश्य है। हम योग को आसन और योगाभ्यास के रूप में लेते हैं। योग स्वास्थ्य का, शरीर-सुख का, शारीरिक समृद्धि का, शारीरिक चेतना का पहला आधार है। अब हम देखेंगे कि योग हमें कैसे परिणाम देता है। ___ हमारी बाह्य त्वचा के भीतर हैं माँसपेशियाँ। जब व्यक्ति योगाभ्यास करेगा तो उसकी माँसपेशियाँ मज़बूत होंगी। पुढे, कंधे, पीठ की मांसपेशियाँ, जाँघ, बैठक, पिण्डलियाँ, पगथलियाँ मज़बूत होंगी। योग शरीर को सौष्ठवता प्रदान करता है। माँसपेशियों के अंदर है अस्थि-संस्थान। यह शरीर हड्डियों का कंकाल है। यह देह जो चल-फिर रही है,खड़ी है, इसका आधार है अस्थि-संस्थान। हड्डी को मोड़ातोड़ा नहीं जा सकता, हिलाया भी नहीं जा सकता, हड्डी तो सख्त होती है, लेकिन योग के द्वारा दो हड्डियों के संधिस्थल को लचीला बनाया जाता है। हमारी पूरी देह में ढेरों संधिस्थल हैं, इन्हें लचीला व मज़बूत बनाने का कार्य योग करता है। जब कोई हड्डी टूट जाती है तो प्लास्टर चढ़ाकर उसे सैट कर दिया जाता है और महीनेडेढ़ महीने में वह जुड़ जाती है, लेकिन प्लास्टर हटने के बाद वह संधिस्थल कड़क | 119 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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