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से माला जपी जाती है और न ही मन्दिर जा पाते हैं। वह आधे घण्टे तक भी माला नहीं जप पाता। लोगों का तांता लग जाता है, जो उसकी साता पूछने आते हैं। उसका सारा ध्यान तो इस बात की तरफ लग जाता है कि कैसे ये उपवास पूरे हों। या कहाँ से क्या आया? या कौन-कौन मिलने आए ? इसी में वह भटक कर रह जाता है। इसी ऊहापोह में ही मास-क्षमण पूरा हो जाता है। ___अतीत में कभी शिष्यों ने महावीर से पूछा था कि तपस्या का फल क्या होता है? महावीर ने कहा-“तपस्या से व्यक्ति भीतर से निर्मल और पवित्र होता है। मन की निरंकुश लालसाएँ व कामनाएँ समाप्त होती हैं।"
भारत कभी सिकन्दर और हिटलर जैसे विश्व-विजय का स्वप्न देखने वाला पैदा नहीं कर सका। आइंसटीन जैसे वैज्ञानिक पैदा नहीं कर सका, मगर यह मत भूलिए कि भारत ने राम-कृष्ण को पैदा किया, महावीर-बुद्ध को पैदा किया, मीरां और कबीर को पैदा किया। भारत की धरती महिमावंत है। यहाँ ऐसे लोग हुए, जिन्होंने जीवन को धन्य किया। यहाँ गाँधी-विनोबा हुए। सन्तों की तो यहाँ एक परम्परा रही है। यही कारण है कि एक सम्राट के सामने यहाँ सिर भले ही झुक जाए, दिल तो सन्त के आगे ही झुकता है। भारतीय संस्कृति की मूल आत्मा सादा जीवन और उच्च विचार को अपनाती है। जब तक यहाँ सदाचार की गंगा-यमुना बहती रहेगी, यह देश विश्व में गौरव पाता रहेगा। तुम अपने जीवन को इतना सादा, पवित्र बना लो कि तुम चलो तो तपस्या, बैठो तो तपस्या, सोओ तो तपस्या बन जए। आपका हर कदम तपस्या के साक्षात्कार की अनुभूति दिलाने वाला होना चाहिए। उपवास से कषाय समाप्त नहीं होते तो उस उपवास का क्या फायद ?
लोग मास-क्षमण करते हैं। मासक्षमण का अर्थ कितने लोगों को पता है ? मास का अर्थ है एक महीना और क्षमण यानी क्षमा में जीना। एक मास तक क्षमा में जीना मासक्षमण है। जो क्षमा में जीने का संकल्प ले चुका हो, वही मास क्षमण का तपस्वी। एक बार की बात है, मैं एक नगर में था। पर्युषण के दिन थे। एक व्यक्ति ने मास-क्षमण किया। समापन अवसर पर उसका वरघोड़ा निकाला गया। जब वह ‘पचक्खाण' के लिए हमारे पास पहुंचा तो किसी ने मेरे कान में कहा कि महाराज, यह आदमी, जिसने मास-क्षमण
धर्म,आखिर क्या है ?
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