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________________ - - - - - - - - - - - - - - - - - - - धर्म, फिर से समझें एक बार - - - - - - - - - गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है, 'सर्व धर्मान् परित्यज्य, मामेकं शरणं "व्रजः।' सरल, किन्तु गहनतम सूत्र है। ‘सर्व धर्मान् परित्यज्य' सारे धर्मों का त्याग कर। सारे धर्म अर्थात तन के धर्म, मन के धर्म, भौतिकी तत्त्वों से जुड़े धर्मों का त्याग करो। क्योंकि ये धर्म नहीं, विधर्म हैं। ‘मामेकं शरणं व्रजः' परमात्मा की भागवत् शरण में चला आ। मैंने दो शब्दों का प्रयोग किया है धर्म और विधर्म। इन्हें समझें। प्रश्न उठता है कि धर्म क्या है ? जब व्यक्ति आंतरिक विधर्म दशाओं से लौटकर आत्म-दशा में, परमात्म-स्थिति में, अपने मूल स्वभाव में लौट आता है, तब उसके जीवन में धर्म जीवित होता है। क्रोध तुम्हारा दुश्मन है, लेकिन तुमने उससे आत्मीयता बना ली है। भगवान कहते हैं कि इस आत्मीयता को एक किनारे रख दिया जाना चाहिए। वैर तुम्हारा दुश्मन है, लेकिन तुम वैर में ही जी रहे हो, लोभ तुम्हारे जीवन का सबसे बड़ा पाप है, लेकिन हर पल तुम लोभ कर रहे हो, तृष्णा तुम्हारे जीवन की दुखांतिका है, लेकिन तृष्णा तुम्हें घेर चुकी है; वासना तुम्हारे जीवन के अंत का निमित्त है, लेकिन तुम वासना के घेरे में ही फँसे हो। भगवान कहते हैं कि जीवन में जो क्रोध, काम, कषाय, मान, माया, लोभ, लिप्सा, वासना, तृष्णा की विधर्म धर्म, फिर से समझें एक बार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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