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________________ मुझे याद है, यह मुम्बई की घटना है। एक भिखारी भीख माँग रहा था। एक बोर्ड लगा रखा था, 'अंधे को कुछ देकर जाएँ। एक व्यक्ति उधर से निकला, उसने पुराना घिसा हुआ पचास पैसे का सिक्का डाल दिया। सिक्का डालकर वह जैसे ही आगे बढ़ा कि भिखारी ने आवाज लगाई, “भाई सा'ब खोटा सिक्का मत डालकर जाओ।' राहगीर ने कहा, 'क्या बात है तुमने तो बोर्ड लगा रखा है अंधे को कुछ देकर जाओ। भिखारी ने कहा, 'यह तो आज मैं यहाँ बैठा हूँ, जो भिखारी रोज यहाँ बैठता है वह फिल्म देखने गया है।' भिखारी भी देखकर बोलता है। वह जानता है कि दान तो कोई देना नहीं चाहता। लेकिन लोग इतने ईमानदार भी नहीं हैं कि इस बात को स्वीकार कर लें। लोग दिखाना चाहते हैं कि हम दानी हैं। तुम तो छुटकारा पाने के लिए दे देते हो। ईमानदार न देगा, वह कहेगा मेरे मन में देने का भाव ही नहीं है, क्या करूँ ? तप आएगा तो संयम भी पैदा होगा, क्योंकि बहुत से काम तुम ऐसे कर रहे हो जो करने ही नहीं चाहिए। तुम दूसरों को देख-देखकर किए जा रहे हो। तुम सोचते भी नहीं हो कि जो दिखावा तुम कर रहे हो, उसकी कोई जरूरत नहीं है ? तुम पड़ोसियों को देखकर फर्नीचर खरीद रहे हो, साड़ियाँ और बर्तन खरीद रहे हो, चाहे तुम्हारे घर में रखने की ही जगह न हो। अगर ईमानदारी से आत्म-मनन और योग्यता का मूल्यांकन करोगे, तो बहुत से काम बंद हो जाएँगे, क्योंकि वे निष्प्रयोजन हैं। दूसरों को दिखाने के लिए तुम भी दिखावा करते हो। ___लड़की की शादी करनी है, लोग हजारों रुपए लुटाते हैं। उनके पास नहीं है तो कर्ज लेकर लुटाते हैं, क्यों ? बस, कारण कि दूसरों ने इतना लगाया तुम कैसे पीछे रह जाओ। तुम अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाना चाहते हो। अहंकार पुष्ट करना चाहते हो। जो तुम लड़की को दे रहे हो अपनी इज्जत बढ़ाने के लिए दे रहो हो। शायद तुम्हें लड़की से भी मतलब न हो, तुम तो लोगों को दिखाना चाहते थे, देख लो। __ भगवान कहते हैं, जैसे समुद्र मछलियों का प्रमुख केंद्र है, उत्पत्ति-स्थल है, वैसे ही सत्य समस्त धर्मों का जन्म-स्थान है। भगवान की नजरों में तप, संयम और शेष सभी जितने गुण हैं उनका बसेरा सत्य में है। जैसे सागर कह सत्य : एक समग्र धर्म Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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