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________________ होती है, दूसरी एक्स-रे फोटोग्राफी। कलर फोटोग्राफी व्यक्ति का बाह्य व्यक्तित्व है और एक्स-रे व्यक्ति का आन्तरिक व्यक्तित्व। आन्तरिक व्यक्तित्व का बोध ही जीवन में सत् का आगमन है। ___'ओ, रंभाती नदियो ! बेसुध कहाँ भागी जा रही हो, बंसी-रव तुम्हारे भीतर है। यह बंसी-रव मनुष्य के अंतर में है, सत्य की पावन गंगा कहीं और प्रगट नहीं होती। जैसे कुएँ में पानी बाहर से नहीं भीतर से ही आता है, अंतःस्रोतों से प्रगट होता है वैसे ही साधना के मार्ग में सत्य किसी गुरु या शास्त्र से नहीं, अपितु स्वयं के भीतर से उपलब्ध होता है। सत्य में तप बसता है और तप क्या है ? यह जो हम उपवास कर रहे हैं क्या यही तप है या अट्ठाई, मासक्षमण या उपधान कर लेना ही तप है ? भगवान कहते हैं कि सत्य में तप बसता है। क्या अर्थ है इसका ? तप वह जो तुम्हारे भीतर की अड़चनों का सामना करे। जो अड़चनें पैदा हो रही हैं उन्हें झेलने के लिए तैयार होना तप है। भगवान तो साधना के शिखर पुरुष हैं। वे सहज जीवन में विश्वास करते हैं। भगवान कहते हैं कि अगर अस्तित्व मुझे भोजन देना चाहता है तो जरूर देगा। इसलिए वे प्रतिदिन ध्यान में निर्णय करते हैं कि अगर ऐसी घटना घटी तो मैं उसी द्वार से आहार ग्रहण करूँगा। घटना-कि घर के सामने गाय खड़ी हो और उसके सींग में गुड़ लगा हो। अब यह तो हो नहीं सकता था, लेकिन महावीर का कहना है कि अस्तित्व जो चाहे करे। कहते हैं महावीर ने कई दिन तक भोजन नहीं किया। पर एक दिन ऐसा हुआ। गुड़ से भरी बैलगाड़ी जा रही थी, पीछे से गाय ने गुड़ खाने की चेष्टा की और उसके सींग में गुड़ लग गया। बस, जिस घर के सामने गाय खड़ी थी, वहीं से आहार ग्रहण किया। तीन महीने बाद अस्तित्व ने चाहा तो ठीक। चंदनबाला की गाथा तो आप सभी को मालूम है। तप वह है। आई हुई अड़चनों को झेलना। अभी बहुत से काम हैं जो तुम अभी कर रहे हो, पर कल न कर पाओगे। यह जो न करने की अवस्था है, यह संयम है। अभी तक तुम दान देते थे, दूसरों को दिखाने के लिए। कल को अगर यह भाव आ जाए कि प्रदर्शन नहीं करना, तुम चुपचाप जाकर दान भंडार में डाल आओगे। दोहरे व्यक्तित्व से मुक्ति पा जाओगे। धर्म, आखिर क्या है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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