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________________ भव्य आसन पर विराजित सभी प्रतिमाएँ बड़ी आकर्षक और लुभावनी हैं। यहाँ जालीनुमा तश्तरियों में उकेरी गई तीर्थकरों की छवियाँ अपने आप में एक नया प्रयोग है। यहाँ सभी प्रतिमाएँ साधनारूप हैं। मंदिर का आभामंडल इतना चार्ज है कि मंदिर में क़दम रखते ही अन्तर्मन को सुकून मिलता है। मंदिर परिसर के नीचे के भाग में है दादावाड़ी और प्राकृतिक पहाड़ी पर बनी चौबीस तीर्थंकर ढूंक जो हमें एक साथ चौबीस तीर्थंकरों के दर्शन करने का सौभाग्य प्रदान करती है। संबोधि-धाम के उत्तुंग शिखर पर साधना-सभागार है। जहाँ ध्यान-साधना करते हुए व्यक्ति शांति और दिव्यता का अनुभव करता है। इस सभागार में एक साथ पाँच सौ लोग बैठकर साधना कर सकते हैं। साधना हॉल के नीचे के भाग में निर्मित है: विमल कला मंदिर। यह स्थान सर्वधर्म सद्भाव का जीवंत प्रतीक है। यहाँ कला और स्थापत्य का अनोखा संगम लिये शिव की साधना, महावीर का कैवल्य, वर्षीतप पारणा, मीरा की भक्ति, महावीर की समता, बाहुबली का अहम् बोध और बुद्ध के वैराग्य की विशाल झाँकियाँ । इस कला मंदिर में तंत्र-मंत्र-यंत्र के हस्तकलात्मक चित्र अपने आपमें नई जानकारी देते हैं। सचमुच यहाँ पहुँचकर इतना भव्यतम मनोरम वातावरण मिलता है कि नीचे उतरने को मन नहीं करता।आगे बना है साहित्य मंदिर और चिकित्सा केन्द्र।साहित्य मंदिर में है गुरुजनों का सम्पूर्ण साहित्य, कैसेट, सीडी, डीवीडी आदि। इस साहित्य मंदिर से ही श्री जितयशा श्री फाउंडेशन की साहित्यिक गतिविधियों का संचालन होता है। इसी साहित्य मंदिर के सामने बने जयश्री देवी मनस चिकित्सा केन्द्र में मनमस्तिष्क के रोगों का इग्लैण्ड व जर्मनी से आयातित फूलों के अर्क के द्वारा चिकित्सा होती है और गुरु महिमा मेडिकल रिलीफ सोसायटी में मिलती है - गरीब और जरुरतमंद लोगों को 40 प्रतिशत की छूट पर दवाइयाँ। चिकित्सा केन्द्र के दायीं तरफ कृष्ण-पीठ है, जो हमें शांति, माधुर्य और कर्मयोग की शिक्षा देती है। सचमुच ऐसा वातावरण, ऐसा धाम और कहाँ जहाँ व्यक्ति एक बार आए तो जाने का मन नहीं करता। यहाँ जाति-पंथ-परंपरा का कोई भेद नहीं है। छत्तीस कौम के लिए यहाँ के द्वार खुले हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि गुरुजनों का माधुर्य, प्रेम और आदरभाव सबको अपनी ओर सम्मोहित करता है। सचमुच अद्भुत है। संबोधि-धाम जहाँ केवल ध्यान और साधना ही नहीं, अपितु विश्वास और प्रेम भी गढ़ा जाता है। सच में यह एक दिव्य साधना-स्थली है। संबोधि-धाम, कायलाना रोड, जोधपुर (राज.) फो. 2060352 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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