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शांति और साधना का धाम
संबोधि-धाम
जहाँ ध्यान और आनंद ही नहीं, विश्वास और प्रेम भी गढ़ा जाता है।
संबोधि-धाम प्रकृति और साधना की वह मनोरम स्थली है जहाँ क़दम रखते ही व्यक्ति को एक अनोखा ही अहसास होता है । उसे लगता है कि वह शहरी ज़िंदगी की भागदौड़ से दूर किसी शांत और दिव्य शक्ति के आभामंडल में आ चुका है । यहाँ सचमुच अपूर्व शांति, आनन्द और उत्साह का अनुभव होता है। जोधपुर रेलवे स्टेशन से मात्र 6 किलोमीटर दूर कायलाना की सुरम्य पहाड़ियों के एकांत में यह धाम हिमालय में स्थित मानसरोवर का आनंद देता है। ध्यान, साधना और सत्संग से व्यक्ति किस तरह सफल, संतुष्ट और मुक्त जीवन जी सकता है संबोधि - धाम उसी के मार्ग-दर्शन का केन्द्र है ।
आइए अब हम प्रवेश करते हैं शांति और साधना की पावन भूमि संबोधि - धाम में। धाम का आधा क्षेत्रफल पहाड़ी भाग पर है और आधा समतल भूमि पर, ऐसा लगता है मानो यह कोई छोटा-सा कैलाश पर्वत हो । संबोधि-धाम के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही हमारी पहली नज़र महावीर - पीठ पर पड़ती है, जो दूर से ही हम सबको अपनी ओर आकर्षित करती है। पेड़-पौधों की छाया में बनी इस पीठ पर भगवान् महावीर जयंती के पर्व पर विशेष अभिषेक समारोह सम्पन्न होता है ।
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सबसे पहले हम चलते हैं साधना-आराधना से जुड़े पहाड़ी भाग की यात्रा करने। इस ओर क़दम रखते ही हम पहुँचते हैं एक विशाल ग्राउंड में जो कि पहाड़ी भाग की तलहटी जैसा है। यहाँ हजार-पाँच सौ लोग आराम से बैठा करते हैं । यहाँ हरी - घास की लॉन है। इस तलहटी के शीर्ष पर है : कमल के भव्य आसन एवं हंस पर सवार ज्ञान और बुद्धि की देवी माँ सरस्वती की 21 फुट ऊँची विशाल प्रतिमा । पूरे देश भर में माँ सरस्वती की इतनी भव्य और विशाल प्रतिमा कहीं और नहीं है । प्रतिमा का शिल्प अत्यंत अनूठा और अद्वितीय है ।
थोड़ा-सा ऊपर चढ़ते ही हम मुखातिब होते हैं गुरु- मंदिर से । यह वास्तव में पूज्य बापजी साहब गणिवर श्री महिमाप्रभ सागर जी महाराज की स्मृति में निर्मित समाधि मंदिर है। मंदिर छोटा-सा है, पर सर्वधर्म - सद्भाव की आबोहवा इसमें सर्वत्र व्याप्त है ।
अब शुरू होता है साधना और आराधना के पड़ावों का क्रम । मध्य भाग की पहाड़ी पर स्थित है अनुपम और अनूठा अष्टापद मंदिर और दादावाड़ी। कमल के
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