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दूसरा सूत्र लें
जह कच्छुलो कच्छं, कंडयमाणो दुहं मुणइ सुक्खं ।
मोहाउरा मणुस्सा, तह कामदुहं सुहं बिंति॥ एक रहस्यमय, परंतु पारदर्शी सूत्र। भगवान कहते हैं, खुजली का रोगी जैसे खुजलाने पर दुःख को भी सुख मानता है, ठीक उसी तरह मोहाविष्ट मनुष्य कामजन्य दुःख को सुख मानता है। खुजली के रोगी को खाज के बाद केवल जलन, विषाद और पीड़ा ही मिलती है वैसे ही कामोपभोगों के सेवन से भी विषाद ही मिलता है। जब तुम जीवन का आकलन करोगे तो पता चलेगा कि तुमने सबकुछ खो दिया और पाया कुछ भी नहीं। इसलिए भगवान बुद्ध ने चार आर्य सत्य कहे-पहला, दुःख है; दूसरा, दुःख का कारण है; तीसरा, दुःख का निरोध हो सकता है और अंतिम, दुःख के निरोध का उपाय अवश्य है। दुनिया में क्या है दुःख ? दुनिया दुःख से मुक्त नहीं है। तुम्हारे सुख क्षण भर में छिन्न-भिन्न हो जाते हैं। जिस पत्नी को तुमने तीस सालों से अपना माना, अगर आज तुम्हें पत्नी का पुराना प्रेम-पत्र मिल जाता है, तो तुम्हारा सुख चूर-चूर हो जाता है, कहाँ है सुख ?
जम्म दुक्खं, जरा दुक्खं रोगा य मरणाणि य।
अहो दुक्खो हु संसारो, जत्थ कीसन्ति जंतवो। भगवान कहते हैं कि इस संसार में जन्म दुःख है, जरा (वृद्धावस्था) दुःख है, रोग दुःख है, मृत्यु दुःख है, परिवार दुःख है। सभी ओर दुःख है। यह संसार दुःख से भरा हुआ है, जहाँ पर जीव कीचड़ में रहने वाले कीड़े की तरह क्लेश पाते हैं। कीचड़ का कीड़ा न तो बाहर निकल पाता है, न उसमें रह पाता है। इस क्लेश की, दुःख की अंतिम परिणति मृत्यु है। तुम उम्र की जिस परिधि से बाहर निकल जाते हो उसके बारे में सोच-सोचकर उसमें बड़ा सुख पाते हो। याद करते हो उन पुराने दिनों को। लेकिन कभी किसी बच्चे को देखा है ? वह जल्दी से जल्दी बड़ा हो जाना चाहता है, क्योंकि वह बड़े होने में सुख देखता है, लेकिन सुख है कहाँ ? क्या तुम्हें लगता है तुम सुखी हो ? वृद्ध पीछे देखता है और बच्चा आगे, लेकिन जिस अवस्था में वे हैं उसमें दुःखी हैं।
इस अस्तित्व में जो कुछ दिखाई देता है उसकी अंतिम परिणति दुःख है। व्यक्ति को अहसास होना चाहिए कि यह संसार दुःख है। जिसे तुम सुख मनुष्य दुःखी क्यों है ?
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