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ओर देख पाते तो शायद उस तत्त्व को पा लेते जिसको पाने के बाद कुछ भी पाना शेष नहीं रह जाता। भगवान कहते हैं 'जे एगं जाणइ ते सव्वं जाणई ।' जो एक को जान लेता है वह सारे अस्तित्व को जान लेता है । सर्वज्ञ का अर्थ जानते हैं आप ? आप तो सर्वज्ञ का अर्थ समझते हैं कि जो अतीत और भविष्य को जानता है, लोक और परलोक को जानता है। हकीकत में जो स्व का ज्ञाता है, वही सर्वज्ञ है । जो चेतना का ज्ञाता है, जिसे आत्म - बोध हो चुका है, वही सर्वज्ञ। लेकिन मनुष्य अंधकार में जीने का आदी हो चुका है। ताब मंजिल रास्ते में मंजिलें थीं सैंकड़ों ।
हर कदम पर एक मंजिल थी, पर मंजिल न थी ।
श्री अरविंद ने कहा है, 'जब खोजता था तब जिसे मैंने दिन समझा था, प्रकाश समझा था—वह खोजने के बाद अँधेरा निकला, रात मिली। जिसे मैंने जीवन जाना था वह मृत्यु सिद्ध हुई, जो अमृत समझकर पी रहा था, वह जहर था । हम मील के पत्थर को ही मंजिल समझ लेते हैं, लेकिन खोजने पर रास्ता बहुत दूर तक चला जाता है और लौटकर वहीं आ जाता है । तुम कोल्हू के बैल की तरह वर्तुलाकार घूमते रहते हो, सुबह से शाम तक और पहुँचते कहीं नहीं हो।
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आज के सूत्रों में भगवान संदेश दे रहे हैं कि व्यक्ति बहिरात्मा से मुक्त हो जाए, परमात्मा में लीन हो जाए । महावीर उस परम जीवन की ओर इशारा कर रहे हैं, जिसकी कोई व्याख्या नहीं है, परिभाषा भी नहीं है; यह सिर्फ वर्णन है। परम सत्य की कोई व्याख्या नहीं हो सकती; क्योंकि व्याख्या उसी की हो सकती है जिसका विश्लेषण हो सके, जिसे तोड़ा जा सके, खंडों में बाँटा जा सके । अनुभूति की व्याख्या नहीं होती । इसे तो अन्तरात्मा में उतरकर ही पाया जा सकता है ।
विज्ञान और धर्म दोनों प्रयोगशालाएँ हैं । विज्ञान बाहर की और धर्म भीतर की प्रयोगशाला है। विज्ञान में जड़ पदार्थ, पुद्गलों की खोज की जाती है और धर्म में चेतन तत्त्व की, सत्य की खोज की जाती है । सत्य की चर्चा नहीं की जा सकती, सत्य तो है । दो से जो मिलकर बनता है उसकी व्याख्या हो सकती है। लेकिन जहाँ एक ही स्वभाव हो, अखंड, वह कथन के परे हो जाता है। मकान की व्याख्या हो सकती है कि यह ईंट, पत्थर, सीमेन्ट, रेत,
परमात्म-साक्षात्कार की पहल
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