SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के साथ संबंध बनाए हैं। अँधेरा ही तुम्हारा स्वभाव बन गया है। अँधेरा तुम्हें सहज ही आकर्षित भी कर लेता है। एक तो हमें रोशनी दिखाई नहीं पड़ती और अगर दिखाई पड़ जाए तो बहुत डर लगता है। व्यक्ति संसार का इतना आदी है कि समाधि का मार्ग मिल भी जाए तो चलने को तैयार नहीं। वह अपने ही बनाए वासनाओं के, कामनाओं के जाल में उलझकर रह गया है। महावीर, बुद्ध, जीसस, सुकरात ने मनुष्य को दिव्य प्रकाश दिखाया, लेकिन उनके साथ क्या सलूक किया गया ? उनका क्या अपराध था कि उन लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया गया? एकमात्र यही न कि तुम अँधेरे में थे और उन्होंने प्रकाश की झलक दिखाई। अंधे, अभिशप्त गलियारों में भटकती मानवता प्रकाश को सहन करने की क्षमता खोती जा रही है। नयेपन का बोध अनजान होने की आशंका डरा देती है। इसलिए हम तो बँधी-बँधाई लकीरों में जीते हैं, कोल्हू के बैल की तरह। कोल्हू का बैल चलता बहुत है, दिन भर चलता है, पर पहुँचता कहीं भी नहीं है। जो वर्तुलाकार घूमेगा वह पहुँचेगा कैसे ! हम जीवन को चक्र कहते हैं। गाड़ी के चाक की भाँति जीवन घूमता रहता है। कभी नीचे का पहिया ऊपर और कभी ऊपर का पहिया नीचे, लेकिन फर्क कुछ नहीं पड़ता। कभी क्रोध ऊपर आता है, कभी मोह ऊपर आता है, कभी प्रेम दिखाई दे जाता है, कभी घृणा आ जाती है, कभी ईर्ष्या से भरे, कभी अपार करुणा छा गई, कभी बादल घिरे, कभी सूरज निकला–बस ऐसे ही धूप-छाँव चलती रहती है। लेकिन हम वहीं हैं जहाँ हम थे। ___ आइन्स्टीन जब मृत्यु-शैय्या पर थे, उनके आसपास अनेक वैज्ञानिक और पत्रकार एकत्र थे। मृत्यु-शैय्या पर पड़े आइन्स्टीन से एक पत्रकार ने पूछा, 'तुम मरने के बाद क्या बनना चाहते हो ?' आइन्स्टीन का उत्तर सोई चेतना को जगाने वाला और सभी को आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करने वाला था। उस महान वैज्ञानिक ने कहा, 'मैं नहीं जानता कि पुनर्जन्म होता है या नहीं। अगर होता हो तो वैज्ञानिक नहीं बनना चाहूँगा। पत्रकार ने कारण पूछा तो आइन्स्टीन ने कहा, 'मैंने बहुत से आविष्कार किए, लेकिन मैं उस तत्त्व को नहीं खोज पाया जिसके इस शरीर से निकल जाने के बाद मुझे दफना दिया जाएगा। काश, हम जो दूसरी खोजों में व्यस्त हैं एक बार भी अपनी 140 धर्म, आखिर क्या है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy