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________________ ये तीन अशुभ लेश्याएँ रहीं। लेश्या यानि भाव-दशा, विचार-दशा। अब हम शुभ की ओर गतिशील होते हैं। क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इस बात की सजगता रखना ही तेजस् लेश्या है। श्रेय और अश्रेय का भलीभांति विवेक रखना ही तेजस् लेश्या का अगला लक्षण है। यदि हम सबके प्रति समान दृष्टि रखते हैं, दया, दान, करुणा, सहभागिता में निष्ठा रखते हैं तो समझ लें कि हम अशुभ से शुभ की ओर कदम बढ़ा चुके हैं और आपके चित की दशा तेजस लेश्या की है। भगवान का सूत्र है जाणइ कज्जाकज्जं, सेयम सेयं च सव्वसमपासी। दयदाणरदो य मिदू, लक्खणमेयं तु तेउस्स। कार्य-अकार्य का ज्ञान, श्रेय-अश्रेय का विवेक, सबके प्रति समभाव, दया-दान में प्रवृत्ति ये तेजोलेश्या के लक्षण हैं। तेजस् लेश्या का पहला लक्षण है-कार्य-अकार्य का ज्ञान। कार्य तो मानवीय जीवन में हर समय सम्पादित करने ही होते हैं। लेकिन यदि हम किसी भी कार्य को ज्ञान और समझ पूर्वक करते हैं तो वही कार्य हमारे लिए मुक्ति का द्वार बन जाता है। प्रसिद्ध कहावत है-वर्क इज वर्शिप। कार्य ही प्रार्थना है। आप कार्य कोई भी करें, लेकिन करने से पहले इनकी सजगता जरूर बरत लें कि मैं वही कार्य करूँ जिससे मेरा भी हित हो और औरों का भी। आत्म-मंगल और लोक-मंगल दोनों का ख्याल रखना ही तेजस लेश्या का मालिक होना है। इसी तरह यह ध्यान रखें कि हम जो भी कार्य करें वह श्रेयस्कर हो। अश्रेयस्कर कार्यों को करना बिल्कुल वैसे ही है जैसे वस्त्र को स्याही से खराब करके फिर उसको धोने की चेष्टा करना है। भगवान सबके प्रति समभाव रखने की प्रेरणा इसलिए दे रहे हैं ताकि मानवता के प्रति हमारा रवैया संकीर्ण न हो। रंग-रूप-जाति-धन आदि के आधार पर मानव के साथ अमानवीय व्यवहार करना एक मानव के लिए कतई शोभनीय नहीं है। गांधी ने कहा, 'अस्पृश्यता अभिशाप है। समग्र मानवता से प्रेम होने के कारण ही महावीर और बुद्ध ने अपने धर्म संघ में छोटी कहलाने वाली जातियों के भी लोगों को अपनी धर्म-दीक्षा प्रदान की थी। दया दान में जितनी अधिक हमारी प्रवृत्ति रहेगी, हम मानवता की सेवा का उतना ही अधिक सुख और सुकून पा सकेंगे। लेश्याओं के पार धर्मका जगत 135 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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