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________________ भोर होते ही वह स्वप्न के अनुसार कुटिया से चल दिया और जो-जो सपने में देखा कि चार मील दूरी पर नदी, नदी पर पुल, पुल पर बिजली के खम्भे, सब कुछ मिलता गया। फकीर समझ गया कि स्वप्न बिल्कुल सही है वह पुल के दूसरे सिरे पर खम्भे के पास पहुँचा और धन निकालने की सोचने लगा। लेकिन आश्चर्य, वहाँ पर एक सिपाही खड़ा था। फकीर चाहते हुए भी धन नहीं निकाल पाया और वापस अपनी कुटिया में चला आया कि कल धन निकाल लूँगा। दूसरे दिन फकीर पुनः वहाँ पहुँचा, लेकिन यह क्या आज भी सिपाही खड़ा है। तीसरे दिन भी सिपाही खड़ा था, अब क्या हो? तभी सिपाही ने फकीर को अपने पास बुलाया और पूछा, आप तीन दिन से लगातर यहाँ आ रहे हैं, कुछ देखते हैं और वापस चले जाते हैं, आखिर बात क्या है? फकीर ने कहा, अब तुमसे क्या छिपाना, तीन दिन से एक ही सपना देख रहा हूँ और उसने स्वप्न कह सुनाया और कहा, जहाँ तुम खड़े हो वहीं कहीं धन गड़ा हुआ है। फकीर की बात सुनकर सिपाही जोर से हँस पड़ा और कहने लगा कि फकीर साहब, जैसा स्वप्न आप देख रहे हो, इसी से मिलताजुलता स्वप्न में भी देख रहा हूँ। ___उसने बताया मैं तीन दिन से लगातार एक स्वप्न देख रहा हूँ कि जहाँ मैं खड़ा हूँ उससे चार मील दूर एक फकीर की कुटिया है। कुटिया में चारपाई है, वह फकीर उस पर सोया हुआ है और उस चारपाई के नीचे धन पड़ा है। फकीर ने सुना तो वह उल्टे पाँव लौट पड़ा। सोचा, जिस धन की खोज में वह था, वह तो उसकी कुटिया में ही है। उसे बोध हो गया कि जिस धन की तलाश वह बाहर कर रहा है, वह तो उसके भीतर ही है। वह धन उसका परमात्म-धन ही था। - व्यक्ति की मूढ़ता यही है कि वह अपने भीतर छिपे धन को पहचान नहीं पाता और बाहर ही खोजता रहता है। जो परम तत्त्व उसके अंतस में है, जो दिव्य शक्ति उसमें है उसे पहचान नहीं पाता और सारे जहाँ में शक्तियों की तलाश में भटकता रहता है। यही व्यक्ति का अज्ञान है। उस परम तत्त्व की तलाश भले ही दसों दिशाओं में कर ली जाए, पर जब तक अन्तरदिशा में न ढूँढ पाएँ तब तक श्रम बेकार ही गया, समझो। आज भगवान श्री महावीर के जिन विभिन्न सूत्रों पर चर्चा कर रहे हैं, वह महामार्ग है। ऐसा धर्म,आखिर क्या है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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