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मुक्ति का मूल मार्ग : ध्यान
भगवान के आज के सूत्रों में प्रवेश से पूर्व हम एक घटना-प्रसंग से
गुजर रहे हैं। मैंने सुना है, घने जंगल में एक फकीर की कुटिया थी । वहाँ ध्यान-साधना कर वह फकीर अनन्त के रहस्यों में खोया हुआ था। उसके अन्तरमन में सदैव एक प्रश्न कौंधता रहता था कि ईश्वर को कहाँ जाकर उपलब्ध करूँ। एक दिन फकीर ने स्वप्न देखा कि उसकी कुटिया से चार मील की दूरी पर नदी बह रही है, नदी पर पुल है और पुल पर बिजली के खम्भे भी लगे हुए हैं। पुल के अन्तिम सिरे पर जो खम्भा है, उसके नीचे अपार धन गड़ा हुआ है। स्वप्न-दर्शन के बाद फकीर की आँख खुल गई। फकीर सोच में पड़ गया, ऐसा स्वप्न तो मैंने जीवन में कभी नहीं देखा । शायद मायाजाल से स्वप्न आ गया होगा, सपनों को आखिर कितना सत्य माना जाए। भोर होते-होते फकीर स्वप्न के बारे में भूल गया। लेकिन रात जब सोया तो अर्द्ध-रात्रि के बाद फिर वही स्वप्न आया । जब उसकी आँख खुली तो सोचा जरूर इस स्वप्न में कुछ रहस्य है तभी तो वापस वही - का - वही स्वप्न आया। वह थोड़ा विचलित हुआ । लेकिन तीसरी रात को जब फिर हू-ब-हू वही स्वप्न आया तो उसे विश्वास हो गया कि स्वप्न मायाजाल नहीं है, इसमें कोई सच्चाई छिपी हुई है।
मुक्ति का मूल मार्ग : ध्यान
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