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________________ व्यवहार में न तो अकड़ दिखाएँ और न ही हीनता । जब तक व्यक्ति मन का निर्धन होता है, तब तक अपने धन की शेखी बघारता रहता है और जब तक अज्ञानी होता है तब तक अपने आपको ज्ञानी मानता है, जिसे अपने अज्ञान का बोध हो जाए वही वास्तव में ज्ञानी हो जाता है। याद रखें, जिसे अपने जीवन में अपार सम्पन्नता पाने के बाद भी सम्पन्नता का अहंकार नहीं होता, वही महान है । अहंकार किसका और कैसा ! आकाश को देखो तो तुम्हें प्रेरणा मिलेगी कि एक दिन तुम्हें ऊपर उठना है, कैसा अहंकार ! और ज़मीन को देखो तो तुम्हें प्रेरणा मिलेगी कि एक दिन तुम्हें ज़मीन में समा जाना है, फिर कैसा अहंकार ! जब भी किसी से मिलो, सहजता, सरलता और सहृदयता से मिलो। बड़ा वह नहीं जो सम्पन्न है या बड़ी-बड़ी बातें करता है, बड़ा वह होता है जो जीवन में, व्यवहार में बड़प्पन दिखाता है । औरों से ऐसे मिलो कि हमारा किसी से मिलना यादगार बन जाए। हमारे व्यवहार में इतनी विनम्रता और शालीनता तो होनी ही चाहिए कि दूसरों के द्वारा खुद को मान दिये जाने पर हम भी उसके मान का सम्मान कर सकें। सम्मान देकर सम्मान लें याद रखें, जीवन में मान पाने के लिए नहीं, देने के लिए होता है । इसे औरों को देकर खुश होइये। जीवन में सम्मान पाने की कोशिश न करें। जो व्यक्ति सम्मान पाने की ख्वाहिश रखता है, वही अपमानित होता है । जिसके भीतर सम्मान पाने की आकांक्षा नहीं है वह कभी अपमानित नहीं हो सकता । आप कितने भी महान क्यों न हों, लेकिन छोटे-से-छोटे व्यक्ति का भी मान करना सीखें। अगर आप किसी मीटिंग में बैठे हैं और एक अदना सा व्यक्ति जो न तो सम्पन्न है, न किसी संस्था या संगठन का अध्यक्ष या मंत्री है, लेकिन वह विलम्ब से पहुँचा है तो आपका कर्त्तव्य है कि आप खड़े होकर उसका सम्मान करें। ऐसा करके आप स्वयं सम्मानित होंगे। जो भी आपके द्वार पर आए उसे सम्मान दें, फिर चाहे वह आपका शत्रु ही क्यों न हो । फ्रांस के सम्राट हेनरी अपने सभासदों के साथ राजमार्ग से जा रहे थे । उन्होंने देखा एक भिखारी सड़क पर खड़ा है । राजा को देखकर वह सड़क पर खड़ा हो गया। राजा के निकट आने पर उसने अपनी टोपी उतारी और राजा को प्रणाम किया । सम्राट ने जब यह देखा तो वे अधिकारियों के साथ पांच सैकण्ड के लिए वहीं खड़े हो गए और उन्होंने भी अपनी टोपी उतारी Jain Education International 76 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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