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________________ का विस्मरण कर तथाकथित भौतिक प्रगति का अनुसरण कर रहा है, वहां प्रस्तुत पुस्तक ठहरकर जीवन को समझने का बोध प्रदान करती है । हमारी जीवनशैली और मानसिकता को बेहतर बनाने के लिए पूज्यश्री ने इतने प्रभावी उद्बोधन दिये हैं कि अन्तर्मन में जमी नकारात्मकता की धूल झड़ जाए और हम नए स्वरूप में निखर उठें। प्रस्तुत पुस्तक में गुरुश्री संकेत देते हैं कि जीवन के मूल्यों और मर्यादाओं का पालन करने से हम स्वयं, परिवार, समाज और राष्ट्र सभी सुखी एवं संपन्न हो सकते हैं । मर्यादाओं का पालन करने से जहां परिवार में शांति आती है, वहीं बच्चों और बड़ों में एक दूजे के प्रति सम्मान एवं प्यार की भावना विकसित होती है । पूज्य श्री कहते हैं कि जीवन को सुखमय बनाने का मूलमंत्र त्याग की भावना है। जीवन में सकारात्मक सोच रखकर जीवन को सही सार्थक स्वरूप प्रदान किया जा सकता है। 1 जीवन के प्रति स्वस्थ सोच और बेहतर नज़रिया विकसित कर जीवन को आह्लादपूर्ण बनाया जाना चाहिए और इसमें वरिष्ठजन भी पीछे न रहें । वरिष्ठजन अपने बुढ़ापे को अभिशाप न समझें, वे अपने अनुभवों से परिवार का मार्गदर्शन करें। उन कार्यों को अंजाम दें, जो युवावस्था में चाहकर भी न कर पाए हों। पूज्यश्री का मानना है कि व्यक्ति बुढ़ापे के ढलते सूरज को भी सार्थक आयाम दे । उसे बोझ समझने की बजाय स्वयं के लिए शांति और मुक्ति का द्वार समझे। हमारा आज का जीवन बहुत अस्त-व्यस्त हो गया है । सभी किसी न किसी प्रकार के तनाव से ग्रस्त हैं और सभी इसका सुगम समाधान भी चाहते हैं । प्रस्तुत पुस्तक जीवन के संभाव्यों का दर्शन कराती हुई सरल व अनुकरणीय समाधान देती है । जीवन को समरस और सकारात्मक बनाने का सुगम मार्ग प्रदान करती है । यह मनुष्य की व्यस्त जिंदगी के सुचारु प्रबंधन के सही तरीके समझाती है । हमारे लुप्त हो रहे पारिवारिक मूल्य और सामाजिक दायित्वों का नैतिक बोध कराते हुए जीवन का लुत्फ उठाने का संकेत प्रदान करती है । Jain Education International For Personal & Private Use Only -लता भंडारी 'मीरा' www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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