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दिया वह गंभीरता से ग्रहण करने लायक है। बीरबल ने कहा, 'जहाँपनाह । वे हाथ मलते रह जाते हैं इसलिए उनकी हथेलियों में बाल नहीं होते।'
हम भी कहीं हाथ मलते न रह जाएँ। प्रकति हमें देती है, नदी हमें देती है, वृक्ष -जमीन और आकाश भी हमें देते हैं, फिर हम देने में कंजूसी क्यों करें! हम देने की भाषा सीखें, देने का पाठ पढ़ें। हमारे पास जरूरत से ज्यादा वस्त्र हैं तो फटेहाल जिंदगी जीने वालों की सहायता करें। अगर आपके पास पचास साड़ियाँ हैं तो उनमें से पाँच साड़ियाँ झोंपड़-पट्टी में जाकर उन्हें दे दें, जिन महिलाओं के दो साड़ियाँ भी नहीं हैं। इससे हमारी संग्रहवृत्ति कम होगी और उसका कल्याण होगा। यह अपरिग्रह व्रत का जीवन्त आचरण होगा। हम अपने हृदय में करुणा लाएँ। औरों के जीवन की विपदाओं को हम कम करने की, ठीक करने की कोशिश करें। कोई आपका कितना भी अहित करे, पर आप उसका अहित न करें।
__ जो तोके कांटा बुवै, ताहि बोय तू फूल
तोको फूल को फूल है, वाको है त्रिशूल। पहले दिन आप अपने कार्य का पर्यवेक्षण करें। दूसरे दिन उन सभी कार्यों को दोहराएँ और संकल्प लें कि अच्छे काम पुनः करेंगे और बुरे-गलत कार्यों को छोड़ने का प्रयास करेंगे। श्रेष्ठ कार्यों से प्यार करें और जीवन को श्रेष्ठ बनाएँ। सजगता रखिए जीवन रूपांतरण के प्रति
लोग मुझसे कहते हैं 'चातुर्मास शुरू हो गया, पर तपस्या, उपवास कम हो रहे हैं।' मैं कहता हूँ 'इस बार उपवास तो कम हो सकते हैं, शायद पिछले वर्ष अधिक तपस्या हुई हो, उसके पिछले वर्ष और भी अधिक उपवास हुए हों। इस बार उपवास तो कम हुए हैं, मगर एक और चीज भी कम हुई है, वह यह कि लोगों का क्रोध बहुत कम हो गया है।' यह जीवन का बहुत बड़ा उपवास है। उपवास करके भी क्रोध कर लिया तो उपवास व्यर्थ है और भोजन करके भी विपरीत वातावरण में शान्त और तटस्थ हैं तो उपवास सध गया है। अगर हम अपने स्वभाव को सुधार लेते हैं, उसे पवित्र
और निर्मल बना लेते हैं तो इससे बड़ी जीवन की तपस्या अन्य क्या होगी? तेला करने से पहले कहीं जरूरी है झमेले मिटाना। इस वर्ष तपस्या भले ही कम हुई हो, पर घर-घर की समस्याएं भी कम हुईं।
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