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________________ परिवार तो हमारे जीवन की पाठशाला है। विद्यालय में तो बच्चा बाद में जाता है उसके संस्कार पहले घर में पड़ते हैं। विद्यालय तो शिक्षा देने के लिए होते हैं, लेकिन परिवार अच्छे संस्कार देने वाले होते हैं। हमारे चरित्र का निर्माण हमारे परिवार के आधार पर होता है। हमारा नज़रिया हमारे पारिवारिक चरित्र से बनता है। हमारे जीवन की अच्छी और बुरी आदतों का मूल भी कहीं न कहीं हमारे परिवार के भीतर ही होता है। ____ आप बच्चों के लिए अच्छा प्रवक्ता होने के बजाय उनके सामने खुद को अच्छे उदाहरण के रूप में पेश करें। एक व्यक्ति जो अपने बच्चों के सामने ऊँची-ऊँची डींगे हाँकने की, ऊँचे-ऊँचे आदर्श स्थापित करने की, सत्य, ईमान, धर्म और संस्कार के दीप जलाने की बातें करता है उसके लिए अच्छा होगा कि वह इनके लिए भाषण देने के बजाय स्वयं को इन कार्यों के लिए समर्पित करके उदाहरण प्रस्तुत करें। याद रखिए खुशियाँ कभी किराये पर नहीं मिलती। मैं प्रायः देखा करता हूँ कि हर घर में साजो-सामान लगभग एक जैसा होता है - वही दो या चार पहिया वाहन, टी.वी. फ्रीज, बीवी, बच्चे, दुकान, मकान। फिर भी एक परिवार के सात सदस्य खुश नज़र आते हैं और दूसरे परिवार के पांच सदस्य दुःखी नज़र आते हैं। एक जैसी सुविधाएं दोनों परिवारों में होने के बावजूद कहीं पर खुशियाँ हैं और कहीं ग़म है। सुबह ईद तो शाम दिवाली जहाँ परिवार खुशहाल होता है वहां की हर सुबह पर्व की तरह होती है। जिन परिवारों में खुशियाँ नहीं होतीं उन्हें ईद मनाकर खुशियाँ मनानी पड़ती है, जहाँ परिवार में प्रेम और आनन्द नहीं होता उन्हें होली पर खुशियाँ पानी पडती हैं और जिन लोगों के अन्तर्मन में प्रेम और शांति के दीप नहीं जलते उन लोगों के लिए दिवाली आया करती है। जहाँ लोगों के घरों में खशियाँ हैं वहाँ रोज ही होली, दीवाली और ईद का पर्व होता है। रिश्तों के अपने खास अर्थ होते हैं। हम परिवार के आपसी रिश्तों को यूं ही ऊपर-ऊपर न लें, क्योंकि इन्हीं रिश्तों में आदर होता है, इन्हीं में सम्मान होता है, हर रिश्ते में प्रेम और त्याग की भावना भी जुड़ी होती है। परिवार के हर सदस्य की अलग-अलग खूबियाँ होती हैं। कोई यह न 120 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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