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________________ एक व्यक्ति ने मुझे बताया कि वह एक ढाबे से खाना खाकर निकल रहा था कि पास में खड़ा एक बूढ़ा भिखारी हाथ फैलाकर खाना माँगने लगा। उसने ढाबे से खाना लेकर उस बूढ़े को दे दिया। भिखारी ने खाना शुरू भी नहीं किया था कि वहाँ दो बच्चे आए और ढाबे से निकलने वाले लोगों से खाना माँगने लगे। लेकिन सभी उन्हें दुत्कार रहे थे। उस भिखारी ने उन बच्चों को अपने पास बुलाया और अपना खाना उन्हें दे दिया। वह भी वहाँ खड़ा सब कुछ देख रहा था। उसने बूढे से पूछा- 'आपने खाना तो उन्हें दे दिया अब आप क्या खाएँगे।' तो बूढ़े ने जवाब दिया – 'मुझे तो तुम्हारे जैसा कोई और भी खिला देगा और एक दिन खाना नहीं भी मिलेगा तो कोई बात नहीं। लेकिन मेरे सामने छोटे बच्चे भूखे रहें और मैं खाना खाऊँ यह मुझसे देखा नहीं जाता।' भिखारी होकर भी व्यक्ति अपनी गुणदृष्टि से महान बन सकता है। जो व्यक्ति नि:स्वार्थ भाव से सेवा करता है, उसके कार्य की हम प्रशंसा करें, उस कार्य से अनुराग रखें तो निश्चित रूप से हमारे विचारों में परिवर्तन होगा। हमारे क़दम उस ओर अग्रसर होंगे। इसके विपरीत जो पैसा लेकर, रिश्वत लेकर कार्य करते हैं, हम यदि उनके कार्यों की प्रशंसा करेंगे तो हमारे जीवन में भी इस प्रकार के अवगुण विकसित होंगे। हमें निरंतर सद्गुणों की ही प्रशंसा करनी चाहिए, गुणवानों के प्रति अनुराग रखना चाहिए। किसी व्यक्ति से झगड़ा हो जाने पर यदि आप उस पर कीचड़ उछालोगे तो यह याद रखिए पहिले आपके हाथ-पाँव गंदे होंगे। आवश्यक नहीं है कीचड़ वहाँ तक उछल कर चला जाए, उस व्यक्ति पर कोई असर पड़े, न पड़े पर आपके हाथ-पैर तो गंदे हो ही जाएँगे। गली-मुहल्ले में झाड़ लगाया पर अपने घर में नहीं लगाया तो स्वयं का घर तो गंदा ही रहेगा। इसलिए अपने ही घर से सफाई प्रारंभ करनी होगी। पहले स्वयं के दोष स्वयं में पहचानने होंगे और उनसे दूर होने का प्रयास करना होगा। । दोष-दृष्टि काली नागिन है, जिससे हृदय कलुषित होता है। गुण-दृष्टि मोक्ष की सोपान है इससे हृदय निर्मल बनता है। दोष-दृष्टि सदा दूसरों में अवगुण देखती है और गुण-दृष्टि गुणों को।आदमी आख़िर वैसा ही बनता है जैसा वह देखता या सोचता है। अक्सर आदमी दूसरों को बदलना चाहता है। 86/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003884
Book TitleBahetar Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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