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________________ मैया के बताता हूँ, तो प्रभु को दु:ख होगा। धर्मसंकट के इन क्षणों में लक्ष्मण ने जैन धर्म के मौलिक सिद्धांत अनेकांत-स्याद्वाद का सहारा लिया और समाधान खोजने को तत्पर हुए। लक्ष्मण ने राम और सीता का एक-एक चरण अपने हाथ में लिया और गौर से देखा और बोले - 'सीता मैया के चरण सुंदर हैं ' यह सुनकर सीता बड़ी प्रसन्न हुई। बोली – 'देखो प्रभु! मैंने तो पहले ही कहा था कि मेरे चरण ज़्यादा सुंदर हैं।' लक्ष्मण बोले - 'माँ! पूरी बात तो सुनो, आप तो आधी-अधूरी बात सुनकर ही नाच उठी।' लक्ष्मण कहते हैं - 'माँ! क्या आपको पता है कि आपके चरण सुंदर क्यों हैं ?' सीता बोली - 'नहीं, मुझे तो नहीं पता।' लक्ष्मण बोले, 'माँ! आपके चरण इसलिए सुंदर हैं, क्योंकि आप प्रभु के चरणों का अनुगमन करती है।' यह सुनकर राम प्रसन्न हो गए। बोले – 'देखा, मैंने तो पहले ही कहा था कि मेरे चरण सुंदर हैं।' तभी लक्ष्मण बोले, 'भगवन् ! आप भी आधी-अधूरी बात सुनकर प्रसन्न हो गए।' लक्ष्मण ने राम से पूछा – 'भगवन् ! आपको मालूम है, आपके चरण सुंदर क्यों हैं ?' राम ने कहा, 'नहीं, मुझे तो नहीं मालूम।' लक्ष्मण ने कहा - 'प्रभु! आपके चरण नहीं, अपितु आपका आचरण सुंदर है और आपका आचरण सुंदर है इसलिए आपके चरण सुंदर हैं।' हम शिक्षा को प्राप्त करके उसे जीवन के साथ जोड़ने का प्रयास करें तभी हमारा आचरण पवित्र होगा जिससे सुंदर जीवन का निर्माण होगा।सुंदर जीवन अपने आप में देश की सबसे बड़ी सेवा है और ईश्वर की सर्वोपरि पूजा है।) 40/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003884
Book TitleBahetar Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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