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________________ गोद सूनी करता हुआ, बच्चों को अनाथ करता हुआ, यहाँ आया है। यदि तेरी भूख अनाज की रोटियों से मिटती तो क्या तेरे देश में रोटियाँ नहीं थी? फिर तूझे आक्रमण करने की आवश्यकता क्यों पड़ी? सिकन्दर के दम्भ का शिखर धराशायी हो गया। वह बुढ़िया के चरणों में गिर पड़ा, माँ तूने आज मेरी आँखें खोल दी। फिर बुढ़िया ने उसे स्नेहपूर्वक भोजन कराया। लूटपाट करने वाले सिकन्दर का हृदय परिवर्तन हो गया था और वह भक्षक से रक्षक बन गया। उसने अपनी लालसाओं को वश में कर लिया। और नगर में किसी प्रकार का नुकसान न पहुँचाते हुए जाने लगा, पर नगर से जाते-जाते वहाँ एक शिलालेख लगा गया – 'अज्ञानी सिकन्दर को इस नगर की एक बुढ़िया ने जगा दिया है।' - हम मन को जानने व साधने का प्रयत्न नहीं करते हैं जबकि हमें इस पर बार-बार चिन्तन, मनन, अभ्यास करते रहना चाहिए। यदि हमारा मन वश में नहीं है तो एकाग्रता और स्वच्छता मन में नहीं आ सकती, न ही मन समस्या से बच सकता है। मन की हर समस्या के साथ भीतर में समाधान भी जुड़ा हुआ है। इसके लिए ज़रूरी है, सकारात्मक सोच के साथ दृष्टि का बदलाव तथा ज्ञान का सम्यक् होना। यदि यह बदलाव आता है तो निश्चित रूप से हमारे आचरण और व्यवहार स्वयमेव परिवर्तित होंगे तथा हमारे समक्ष नया जीवन दर्शन होगा। दृष्टि में बदलाव के पश्चात् हमारी जीवन-शैली में बदलाव होना चाहिए। समभाव में रहने की कला को विकसित करना चाहिए । जहाँ तक हो सके हमें मनोनिग्रह के लिए सहज जीवन जीना चाहिए। अत्यधिक सक्रियता के इस युग में दिनभर काम करने वाले लोग शाम तक न सिर्फ शरीर से थक जाते हैं, बल्कि मन से भी अशांत हो जाते हैं । तन और मन के परिश्रम को कैसे पृथक रखा जाए, इस विषय पर एक बार कुछ शिष्यों ने अपने गुरुदेव से प्रश्न पूछा। उनकी जिज्ञासा इसलिए भी थी कि वे देखते थे उनके गुरु चौबीस घंटे अत्यधिक सक्रिय दिखते थे, लेकिन फिर भी विचलित नहीं होते, चेहरे पर थकान नहीं आती। गुरुदेव ने उत्तर दिया - सारा मामला केंद्र पर घटने वाली शांति से जुड़ा है। मनुष्य का केंद्र यानी मन यदि शांत है, मौन है तो परिधि पर कितनी ही 26 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003884
Book TitleBahetar Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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