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कैसे बदलें दुःख को सुख में
ज़िंदगी की जंग जीतने का अर्थ है आने वाली मुसीबतों का मुकाबला करने के लिए स्वयं को तैयार रखना ।
ख़ूबसूरत नज़र आने वाली यह दुनिया एक नाट्यशाला है । पुण्य और पाप इसके निर्देशक हैं । इनके निर्देशन में हम अनेक प्रकार के नाटक करते हैं, भूमिकाओं का निर्वाह करते हैं। अपनी झूठी चतुराई में हम नाटक खेलते रहते हैं और पापड़ बेलते रहते हैं । संसारी नाटक का पात्र बन जाता है वहीं सर्वज्ञ मौन मूक दर्शक बनकर साक्षी भाव में जीता है।
संसार में सर्वत्र पाप-पुण्य का खेल खेला जाता है । पाप-पुण्य के खेल में व्यक्ति सदा घिरा रहता है। आज हम वही फल पाते हैं जैसे हमने बीज बोये थे पाप और पुण्य रूपी बीजों के फलों को पाने से हमें कोई नहीं रोक सकता है । फ़र्क केवल इतना ही है कि पुण्य शुभ होता है और पाप अशुभ। जैसे रामलीला
कोई राम की भूमिका अदा करता है और कोई रावण की। लेकिन दोनों की भूमिका के पीछे पुण्य-पाप काम किया करते हैं। जीवन में हमें जो भी परिणाम प्राप्त होते हैं उसमें इन दोनों की ही भूमिका होती है। वैसे पुण्य और पाप दोनों ही बंधन है मगर एक शुभ बंधन है तो दूसरा अशुभ। पुण्य सोने की बेड़ी है तो
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