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जागरण की ओर बढ़ो, अंधकार से आलोक की ओर वर्धमान बनो ।
पहले चरण में बोध और संकल्प चाहिए। संकल्पवान् ही आत्मवान् होता है । हम ज्ञान-चेतना को जगाएँ । यह जो निद्रा - मूर्च्छा-स्वप्न से घिरा नाटकीय जीवन है, उसके प्रति जगाएँ साक्षी चेतना को । आर्य मार्ग कहता है सम्यक् संकल्प हो । सम्यक् संकल्प और नाटकीय जीवन के प्रति ज्ञान - चेतना, साक्षी चेतना, यही तथाता की परम उपलब्धि में मददगार है ।
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महावीर के पाँच आर्य कर्मों से आप परिचित हैं, लेकिन बुद्ध के इन आठ मार्गों में से हमारे जो भी काम आ जाए प्रेम से अपनाएँ । चित्रमुनि ने ब्रह्मदत्त को सम्बोधित किया। मैं उसी सत्य को पुनः दोहरा रहा हूँ ।
गजराज जैसे दलदल से बाहर आया था महावत की जीवन-दृष्टि को पाकर । मैं फिर से उन नगाड़ों को बजा रहा हूँ । कोई तो ऐसा गजराज ज़रूर होगा, जो दलदल से बाहर आ ही जाएगा ।
वृत्ति से ऊपर उठ सको, वासना का विसर्जन हो सके, काम-भोग से मुक्त हो जाओ, तो अच्छी बात है। ऐसा नहीं हो सके, तो महावीर के पंचमार्ग या बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग को तो श्रद्धापूर्वक जीओ । आर्य, कुल से नहीं, आर्य-कर्म से आर्य कहलाओ। आर्य-मार्ग सारी मानवजाति के लिए है । हमारा हर कार्य सम्यक् और सत्य - शिवानुरूप हो, यही आज का संदेश है। यही कहना है - मानवता को ।
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