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पर चोरी से नहीं, झूठ बोलकर या छल-कपट करके नहीं। धन भी उतना ही कमाओ जिससे हमारे जीवन के व्यवहार के साधन जुटाए जा सकें। बुद्ध कहते हैं कमाई भी सम्यक् करना, ठीक ढंग से संतुलित ईमानदारी और प्रामाणिकता के साथ अपनी आजीविका कमाना। उतना ही धन कमाओ, जितना उपभोग कर सको।
सम्यक् आजीव के पश्चात् है सम्यक् व्यायाम - अर्थात् अपने तन और मन को स्वस्थ रखना। इतना व्यायाम भी न करो कि शरीर थक जाए। तन आलसी न हो, चुस्त-दुरुस्त रहे, और कार्य का उद्वेग भी न रहे । नहीं तो एक पल भी शान्त न बैठ सकोगे। हर समय स्वयं को उलझाये रखोगे। कुछ-न-कुछ करने की उधेड़बुन मन में लगी रहेगी। अखबार पढ़ो, रेडियो सुनो, टी.वी. देखो, बातें करो- तुम कहीं-नकहीं मन को चिपकाए रखोगे। इसलिए न आलस काम का है न अत्यधिक कर्मठता। कर्मठ होना चाहिए लेकिन अत्यधिक कर्म जल्दबाजी में बदल जाएगा, तब सही गलत का भान न रहेगा।कार्य जल्दी होना चाहिए, पर जल्दबाजी से नहीं। जल्दबाजी नुकसान पहुँचाती है। सम्यक् व्यायाम होना चाहिए। फिर है सम्यक् स्मृति- कर्म के प्रति ठीक-ठीक स्मरण, ज्ञान, बोध और सजगता बनी रहे। जो भी करें परे होश से करें, ज्ञानपूर्वक और सजगता के साथ करें। इसके बाद सम्यक् समाधि- अन्तर्मन में अपने होश को बनाए रखें। साँस रोककर बैठना समाधि नहीं है- यह तो प्राणायाम में श्वास की एक प्रक्रिया हो गई। समाधि तो उस अवस्था का नाम है जो प्रतिकूल और अनुकूल स्थितियों में भी व्यक्ति को तटस्थ बनाए रखती है। साइबेरिया में सफेद भालू छ: छ: माह तक बर्फ गिरने पर साँस रोके पड़े रहते हैं, क्या यह समाधि हो गई? मेंढ़क सर्दी-गर्मी में भूगर्भ चले जाते हैं- वर्षा आने पर पुनः बाहर निकल आते हैंयह भी समाधि नहीं है मात्र साँस रोकने की प्रक्रिया है।
समाधि श्वास का रोकना नहीं है- यह तो शरीर के साथ ज्यादती है। समाधि तो सजगता है, होश है, बोध है। अपने अंतस् में, अपने अंतर्केद्र में प्रतिक्षण अपने कर्त्ता और कर्म के प्रति जो तटस्थता और साक्षीभाव है, जो सजगता है और तथाता की उपलब्धि है, वही समाधि है। __यह जो आर्य मार्ग है, वह एक आध्यात्मिक उपक्रम है। सम्यक् जीवन-शैली का यह उपक्रम इसलिए ताकि सब लोग महामार्ग के पथिक हो सकें, ब्रह्म-चर्या कर सकें । संन्यास का श्रेय आत्मसात् कर सको, तो बलिहारी, कम-से-कम आर्य मार्ग का, अणुव्रत और मध्यम मार्ग का तो आचरण होना चाहिए। जीवन के मंदिर में इसे हम द्वार समझें।
चित्रमुनि हमें निद्रा, स्वप्न, सम्मोहन और मूर्छा से जागृति की ओर बढ़ने को प्रेरित कर रहे हैं। मूर्छा मृत्यु है और जागरण जीवन । जागे सो पावे। मूर्छा से परम
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