SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मार्ग और भी हैं। आर्य मार्ग स्वीकार करो। गृहस्थ-धर्म का, मानव मूल्यों का वरण कर अध्यात्म-चेतना के बल पर कर्मों के कारागार से छुटकारा मिल सकता है । 1 बहुत से ऐसे कर्म हैं जिनमें तू प्रवृत्त हो सकता है । और कुछ नहीं तो प्राणिमात्र के प्रति दयालु तो हो ही सकता है। तू आर्य कर्म तो कर, अच्छे कर्म तो कर, भलाई कर, मानवता का उपकार कर । तू एक सम्राट है। तुझे काम - भोगों में इतना आसक्त नहीं रहना चाहिए। तुझे तो हर ओर से वीतरागता पानी है। तू वीतराग का वंशज है । संयत - पुरुष का मित्र है । - हम सब भी तो सम्राट ही हैं। अपने मालिक और अपने राजा तो हम खुद ही हैं । इसलिए चित्रमुनि कह रहे हैं कि तुम तो राज्य के भी मालिक हो । तुम में तो कुछ करने की सामर्थ्य भी है इसलिए राज्य के लोगों का भला कर । स्वयं को हिंसा से उपरत कर, झूठ से परहेज कर, चोरी के माल पर कुदृष्टि मत डाल, परिग्रह पर अंकुश लगा और जितना संभव हो सके, स्वयं को मैथुन से अलग रख | चित्रमुनि कहते हैं आर्य कर्म कर । महावीर ने पाँच आर्य कर्म कहे हैं- अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य । बुद्ध ने अष्टांगिक आर्य मार्ग कहे हैं - सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वाणी, सम्यक् कर्मांत्, सम्यक् आजीव, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि | पतंजलि ने भी आठ प्रकार के आर्य मार्ग कहे हैं - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि | चित्रमुनि कहते हैं कि अपने जीवन में कम-से-कम ये आर्य कर्म तो कर। इन पाँच मार्गों को अथवा इन आठ मार्गों को तो स्वीकार कर ही सकता है। क्योंकि जानते हुए भी संसार में लोग काम-भोगों से अनासक्त नहीं हो पाते। जैसे दलदल में फँसा हाथी किनारे को देखते हुए भी स्वयं को कीचड़ से बाहर नहीं निकाल पाता । आपने मुझसे बद्धरेक हाथी की चर्चा सुनी है । जिस गजराज ने कौशल - नरेश की महान् सेवा की, दसों युद्धों में विजय का परचम लहराया, बूढ़ा होने पर वही दलदल में धँस गया। अब भला बुढ़ापा किसे नहीं आता, कौन युवा वृद्ध नहीं होता । दलदल से उसे सैनिक नहीं निकाल पाये, बूढ़े महावत द्वारा युद्ध के नगाड़े बजाये जाने पर उसका सोया गजत्व जाग उठा । वह स्वाभिमान से भर उठा। दलदल क्या बाहर आ ही गया । बूढ़ा फिर से जवान हो उठा। निजत्व जग उठे, तो दलदल क्या है ! काम-भोग के दल-दल से कमल बाहर आ ही जाता है। आम हाथी दलदल में धँस जाये, तो जैसे-जैसे निकलने की सोचता है, और धँसता चला जाता है । काम - भोग का रस है ही ऐसा, खुजली को खुजलाने जैसा । चित्रमुनि के संदेशों को सुनकर वह सम्राट भले ही विरक्त न हो पाया हो, लेकिन उस बूढ़े महावत की तरकीब पाकर उसे बूढ़े हाथी में भी नए प्राण संचारित हो 185 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy