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अन्तर के पल्लवन में धीरज और शांति चाहिए। मौन प्रतीक्षा चाहिए। हड़बड़ में गड़बड़ है। मौन को घटित हो लेने दो। शून्य को छा ही लेने दो। शान्ति के आनन्दसरोवर बन ही जाओ। जो होगा, अंधकार के प्रति भी वीतद्वेष हो चलो। प्रकाश फूटेगा, सूरज उगेगा। अपने आपको जीवन को पढ़ने में लगाओ। जितना ज्यादा आदमी जीवन और जगत को देखेगा, समझेगा, निष्कर्ष तक पहुँचेगा, उसके भीतर उतरनी ही अधिक अध्यात्म की प्यास, अध्यात्म की लौ प्रकट व संवर्द्धित होगी। जीवन के वास्तविक मूल्यों के प्रति वफादारी जग जाए तो मुक्ति-की-नेमत, मुक्तिका-वैभव आत्मसात् है ही।
जब तक प्यास नहीं है, तब भले कंठ तक पानी क्यों न आए, पानी निर्मल्य है। प्यासी माटी पर बादल बरसे, तो ही माटी सोना उगलेगी। जिस दिन प्यास जग गई, तब एक बूंद भी अनमोल हो जाएगी। उसी प्यास, उसी आन्तरिक अभीप्सा को जगाने के लिए मेरे संबोधन हैं। कुछ समय के लिए आँख बंद करे, भीतर उतरें, देखें, अपनी बद्धरेकताओं को पहचानें। स्वयं के सान्निध्य का लाभ उठाएँ और मुक्त हो ही जाएँ - अभी, इसी क्षण।
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