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संसार के प्रति तटस्थ बने रहना अध्यात्म को स्वयं में सदाबहार जीना है । सबसे प्यार हो, महत् का सम्मान हो, मुक्ति के मनोभाव हों - बस ये तीन सूत्र मेरी ओर से मेरे तीन संदेश समझो ।
बद्धरेक मुक्त हुआ, इसलिए कि मुक्ति की कामना पहले से ही प्रबल थी। महावत बाहर लाने में निमित्त बना | नगाड़ों ने आत्म - शौर्य को और जगाया। तुम पत्नी से नहीं, वरन् पत्नी के प्रति रहने वाली कामुकता से बाहर आओ । जंगलों में नहीं, शहर में रहकर भीड़-भाड़ के बीच में अपने एकत्व को जागरूक बनाये रखो । खुद को पहचानो, खुद की स्थिति को पहचानो, मुक्ति की कामना लिए खुद के संकल्पों को जगाओ, आत्मविश्वास के मजबूत पाँवों पर स्वयं को स्थिर करो और फिर गुजर चलो स्वयं से, जगत् से, हर स्थिति से । सजग सहजता ही संबोधि की आधारशिला है, जीवन-जगत् के बीच संतुलित शांत जीवन जीने की व्यावहारिकता है ।
ऐसा नहीं कि जीवन में सत्य की, दिशा-बोध की भेरियाँ या नगाड़े बजाने वाले लोग नहीं मिलते। मिलते हैं पर सौभाग्य से ! जन्म-जन्म के पुण्य-योग से मिलते हैं । पहली बात तो यही है कि दिशा-बोध के नगाड़े बजाने वाले लोग भी मूर्च्छित हैं । वे भी उसी माया की गाँठ में जकड़े हुए हैं। ऐसा अवसर, अपूर्व अवसर सौभाग्य से कभी-कभी ही आता है, जब निज से जुड़े किसी बूढ़े महावत की तरह सद्गुरु का सहयोग मिलता है । कोई सम्बुद्ध सद्गुरु का सामीप्य व सान्निध्य मिल जाए तो हमारे दृष्टिकोणों का रूपांतरण हो जाए । दृष्टि बदले तो ही हमारी सृष्टि बदलेगी । विकृत दृष्टि से ही विकृत सृष्टि निर्मित-परिवर्तित होगी ।
बद्धक हाथी को निकालने में हजारों सैनिक लग जाए, पर वह तो उस वृद्ध महावत से ही बाहर निकलेगा, जो उसकी चेतना की कमज़ोरी और उसकी विशेषता को पहचानता है। हमारी सोच यह होती है कि गुरु होना ही चाहिए, चाहे उससे आत्मा बदले या न बदले । गुरु है, पर वह आरोपित है। अपने पूर्वजों के वंश की तरह गुरुओं का भी वंश चलता है । जीवन से कुछ मिला या न मिला, उनमें चेतना का रूपांतरण हुआ या न हुआ, कोई संबोधि का चिराग जला या न जला, इस पर कोई ध्यान नहीं देता, इससे किसी को कोई सरोकार नहीं । हमारे अंधाधुंध चल रहे विकल्प शांत होते हैं या नहीं होते, मन के कषाय तिरोहित होते हैं या नहीं होते, अहंकार का आभामंडल छिटकता है या नहीं छिटकता, इससे कुछ भी लेना-देना नहीं । कहीं कोई मुक्ति घटित हो रही है या नहीं, कहीं कोई प्रेम, शांति और पवित्रता घटित हो रही है या नहीं, इस पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है, बस भेड़धसान है। हमें तो बस गुरु चाहिये, फिर चाहे वह गुरुघंटाल हो ।
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