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________________ दलदल से बाहर क्यों नहीं आ सकते? मनुष्य बँधा हुआ है। उसे किसी और ने नहीं बाँधा है, वह खुद बँधा है। किसी दूसरे को बाँधने का अर्थ ही हुआ कि हम स्वयं बँध गये। जब किसी नौकर को घर में रखा तो तुम स्वयं बँध गये।अगर एक दिन नौकर न आये तो अपने हाथ से थाली भी न धुल पायेगी। बायजीत के जीवन की एक प्यारी-सी घटना है। कहते हैं कि बायजीत अपने शिष्यों को साथ लेकर जा रहे थे। उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति एक बैल लेकर जा रहा था। वह व्यक्ति रस्सी से बँधे बैल को अपने नियंत्रण में किये हुआ था। बायजीत ने अपने शिष्यों से पूछा- बताओ इन दोनों में से मालिक कौन है? शिष्यों ने कहा-इसमें पूछने की क्या बात है स्वामी! यह व्यक्ति जिसने बैल को रस्सी से बाँध रखा है, वही इसका मालिक है। बायजीत ने झट से अपनी जेब से चाकू निकाला और उससे रस्सी को काट दिया। तब बायजीत ने पूछा- बताओ, अब कौन किसके पीछे जा रहा है? आदमी के पीछे बैल या बैल के पीछे आदमी ! मालिक के पीछे गुलाम या गुलाम के पीछे मालिक? बायजीत ने कहा- बैल के पीछे आदमी दौड़ रहा है, फिर आदमी मालिक कैसे हुआ? असली मालिक तो बैल है, जिसके पीछे आदमी गुलाम की तरह दौड़ रहा है। मालिक की तुलना में बैल स्वतंत्र है। मनुष्य अपने आपको इतना गुलाम बना चुका है, इतना बद्धरेक कर चुका है कि आश्रित हुए बिना जीना, उसे जीना ही नहीं लगता। हम सोचते हैं कि देश आज़ाद हो गया तो गुलामी मिट गई, मगर आदमी की गुलामियाँ बड़ी विचित्र ढंग की होती हैं। एक आदमी तंबाकू खाता है, तो प्रातः जब तक वह तंबाकू सेवन न कर ले, तब तक शौच-क्रिया भी नहीं कर पाता। वह तंबाकू का गुलाम है। एक व्यक्ति अगर संत-जीवन स्वीकार कर चुका है, फिर भी नशे-पते का सेवन कर रहा है। हिन्दू-संतों में बीड़ी-सिगरेट, जर्दा, भाँग-चिलम तो आम बात है और अगर मान लो किसी धर्म में नशे-पते की चीजें भी मना है, तो लोग तम्बाकू सूंघना ही शुरू कर देंगे। तम्बाकू खाओ या सूंघो, तुम बेहोशी में जा रहे हो, दलदल से बाहर आने का तो यह अभियान है ही नहीं! हम अपनी बुराइयों के ही गुलाम हुए। हमारे बंधन, हमारी परतंत्रताएँ अलग-अलग बाना पहन चुकी हैं। ऐसे बाने कि जिनमें आत्मा के घाव दब चुके हैं। कृपा कर अपनी अन्तर-आत्मा और अन्तरमन की पीड़ा को समझने का प्रयास करो। अपनी परतन्त्रताओं को, अपने दलदल को पहचानो। ___ नशा तो बद्धरेकता का एक नमूना है। ऐसे ही धन है। लगा है आदमी दिन-रात धन के पीछे। सवेरे से लेकर रात तक, बारह बजे तक।सवेरे उठने से लेकर रात सोने तक एक ही धन की चकरी चलती रहती है। 169 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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