________________
वर्ष पूर्व भगवान महावीर ने वही सिद्धांत प्रभावना के रूप में प्रतिपादित किया । जो अर्थ प्रभावना का है वही अर्थ सिनक्रॉनिसिटी का है । प्रभावना दी नहीं जाती, प्रभावना होती है । सिनक्रॉनिसिटी का अर्थ है इधर वीणा बजी और उधर हृदय झंकृत हुआ, इधर सूरज उगा, उधर फूल खिला - यही प्रभावना है। इधर मैं आया, आने के साथ ही आपके हृदय के तार मुझसे जुड़ गए, यह प्रभावना हुई । आत्मा से आत्मा के तार जुड़ गए। इसलिए इधर तार झंकृत होता है, उधर कोई हृदय नाचने लगता है । इधर वीतरागता का इकतारा बजता है, उधर कोई मीरा या सूरदास करताल बजाने लगते हैं। सूरज उगा और कमल खिला यह प्रभावना है। सूरज उगा पर कमल न खिल पाया, तो सूरज का उगना क्या हुआ? तानसेन दीप- राग छेड़े और दीपक न जलें? मल्हार गाएँ और बादल न बरसे ? तब उनका राग छेड़ना न छेड़ना जैसा ही रहा ।
प्रभावना तो तब प्रभावित करती है, जब आत्मा से आत्मा झंकृत हो जाए। तुम रुपये-पैसे की प्रभावना (वितरण) भी करो लेकिन जो रुपये तुम सत्संग या पूजा में शरीक होने वाले हजार लोगों को बाँटना चाहते हो, उनमें से पता करो कि किसका बेटा स्कूल की फीस जमा नहीं कर पाया या किसके घर आहार का प्रबंध नहीं हो पा रहा, वह धन तुम उनको दो, तुम्हारी ओर से यह सच्ची प्रभावना हो जाएगी। धर्म के मूलभूत रूप के अनुसार प्रभावना हो जाएगी। मैं पुन: कहूँगा हम श्रावक - समाज पर, मानव-मंदिर पर ध्यान दें। ये सभी ट्रस्ट, संस्थान जो नामपट्ट के लिए सैकड़ों-हजारों रुपये लगा रहे हैं, वे इस मानव जाति के लिए जागरूक हों और जितनी अधिक सेवा कर सकें शिक्षा-चिकित्सा के लिए जरूर करें ।
मानव स्वयं एक मंदिर है, तीर्थ रूप है धरती सारी,
मूरप्रभु की सभी ठौर है, अन्तरदृष्टि खुले हमारी ।
इसी मंगलकामना के साथ कि सभी की अन्तर- दृष्टि खुले, अन्तर में बैठे हुए प्रभु को प्रणाम !
69
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org