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राजकुमारी आँसुओं के निर्झर से भीग गई। सोचने लगी- जिस संत को मैंने जाति का . चाण्डाल समझा, वह तो स्वभाव से महान अमृत-पुरुष सिद्ध हुआ। इसकी आत्मा, इसका हृदय कितना विशाल है कि चरणों में आई राजकुमारी को भी वीतराग भाव से इन्कार कर रहा है।
तपस्या समाप्त कर संत आहार-चर्या के लिए निकला। कहीं यज्ञ हो रहा था, वहाँ प्रचुर मात्रा में भोज्य सामग्री बनी थी। वहीं जाकर संत ने भिक्षा की याचना करते हुए कहा कि तुम्हारे द्वार पर संत हरिकेशबल आया है, उसे भिक्षा दो, आहार दो। जैसे ही ब्राह्मणों ने हरिकेशबल का नाम सुना, यज्ञ-स्थल के सारे ब्राह्मण दौड़ पड़े और उसे पीटने लगे कि इसने हमारी यज्ञशाला को अपवित्र कर दिया। एक चाण्डाल ने यज्ञवेदी पर आकर सारे स्थल को अनिर्मल, कलुषित कर दिया। युवा, वृद्ध सभी हरिकेशबल को मारने लगे। पिटते-पिटते जैसे ही हरिकेशबल पृथ्वी पर गिरने वाले थे कि यक्ष ने प्रकट होकर उन्हें थाम लिया और वहाँ उपस्थित सभी लोगों की पिटाई करने लगा।
कोई समझ न पाया कि उन्हें कौन मार रहा है। वह तो अदृश्य रूप से ही अपना काम किये जा रहा था। इतने में ही वह राजकुमारी, जो यज्ञ की मुख्य अतिथि थी, वहाँ पहुँची। उसने सारा वृत्तान्त जानकर कहा कि तुमने किस संयत मुनि की अवहेलना की है। अरे, जिनको तुमने चाण्डाल समझा है वह इस काया में ज्योतिर्मय दीप है। इनसे क्षमा माँगो और कहो, आप अवश्यमेव भोजन स्वीकार करें, हमसे भूल हो गई। जो हुआ वह हमारा अपराध है । अबोध होने के कारण यह सब हुआ।
संत तो शांति की मूर्ति थे। उन्होंने कहा- मैंने तो आप को मारा नहीं है और मैं यक्ष से प्रार्थना करूँगा कि वह मेरे सान्निध्य में रहकर मेरे ऊपर होने वाले किसी भी आघात का प्रतिकार न करे। अति आग्रह से संत ने आहार लिया। आहार के पश्चात् ब्राह्मणों ने संत हरिकेशबल से कुछ प्रश्न पूछे। उन्होंने पूछा- तुम संत हो, मुनि हो, हमें यह बताओ तुम कहाँ स्नान करते हो, तुम्हारा कौन-सा सरोवर है। तुम्हारे शान्ति-तीर्थ कौन से हैं, जिसमें नहाकर तुम विमल, विशुद्ध, पवित्र और इस प्रकार के क्षमाशील स्वभाव के व्यक्ति बने। हरिकेशबल ने जो उत्तर दिया वह उत्तर ही आज का सूत्र है।
हम सूत्र में प्रवेश करें, इसके पूर्व यह समझने का प्रयास करें कि राजकमारी ने समझा कि संत चाण्डाल जाति का है। हमने सारी मनुष्यता को वर्गों में बाँट दिया है। पूरी मानवता विखण्डित हुई है। जिस मानवता के मध्य हमें कदम-दर-कदम फूल खिलाने चाहिए, जिसके मस्तक पर प्रेम का तिलक लगाना चाहिए उसके स्थान पर हमने, हमारी परम्पराओं ने विभाजन किया है। मानव जाति को तोड़ा है। एक व्यक्ति
Sol
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