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________________ दुज्जयं चेव अप्पाणं, सव्वं अप्पे जिए जियं । सूत्र कहता है कि जो दुर्जेय संग्राम में दस लाख योद्धाओं को जीतता है, उसकी अपेक्षा जो एक अपने को जीतता है, उसकी विजय ही परम विजय है । पाँच इंद्रियाँ क्रोध, मान, माया, लोभ और मन ये ही वास्तव में दुर्जेय हैं। एक स्वयं को जीत लेने पर सभी जीत लिए जाते हैं । T हम सूत्र में प्रवेश करें इसके पहले सूत्र की पृष्ठभूमि को पहचानें । कहते हैं, मिथिला नगरी का नरेश नमि, महीनों से भयंकर दाह - ज्वर से पीड़ित था । ज्वर के कारण उसका शरीर जलता था। वह तड़पता रहता था । दूर-दूर से वैद्य-हकीम पहुँचे, परन्तु उपचार न हो पाया। अंत में किसी संत ने कहा कि नमि के शरीर पर लाल चंदन घिसकर लगाया जाए, तो उनकी जलन शांत हो सकती है । नमि की पत्नियाँ चंदन घिसने बैठीं। अब इतनी पीड़ा है तो घर के सभी सदस्य चाहते हैं कि हम भी इस पीड़ा को शान्त करने में सहायक हो जाएँ। पीड़ा को लिया तो नहीं जा सकता, मगर पीड़ा को सहलाया तो जा सकता है। नमि की पत्नियाँ जब चंदन घिस रही थीं, तो भयंकर पीड़ा के कारण उनके हाथों में बजने वाले कंगन और चूड़ियों की ध्वनि भी नमि को कर्कश प्रतीत हो रही थी। नमि व्याकुल हो उठा। उसने कहा- मुझसे यह आवाज, यह शोरगुल सहन नहीं होता, मैं बहुत जल रहा हूँ । कमसे-कम यह शोर, यह आवाज़ तो बंद कर दो। राजरानी ने चंदन तो घिसा, पर आवाज़ न आने दी। चंदन नमि के शरीर पर लगाया गया, उसे कुछ शांति मिली पर उसके मन में प्रश्न उठा। उसने राजरानियों से पूछा, 'क्या चंदन तुम लोगों ने नहीं घिसा ?' रानियों ने कहा, 'राजन् ! हमने ही घिसा है । ' ‘तो क्या चंदन घिसते समय कंगन और चूड़ियाँ उतार दी थीं ' - नमि ने प्रश्न किया । 'हाँ नरेश ! सौभाग्यसूचक के रूप में एक-एक कंगन ही हाथ में रखा, शेष सभी कंगन और चूड़ियाँ उतार दीं।' नमि चौंके, ‘तो इसलिए आवाज नहीं आ रही थी' - राजरानियाँ चुप हो गईं । लेकिन नमि भीतर मुड़ गए, अन्दर उतर गए। तब धरती पर नया संबुद्ध पुरुष प्रकट हुआ जिसने जाना कि जहाँ अनेक हैं, वहीं पीड़ा है । जहाँ पर अनेक का भाव है, वहीं पर पीड़ा है। जहाँ एकत्व है, एक का सुख है, वहाँ न कोई शोर है, न पीड़ा है और न दुख है। जहाँ एकाकीपन की संवेदना है, वहाँ पूरी तरह शांति है, सुख है, समृद्धि है । जहाँ शरीर, इन्द्रिय, मन और इनसे आगे धन और परिवार की आसक्ति भरी बेतुकी भीड़ है, वहीं दुःख है । जहाँ केवल एक I Jain Education International For Personal & Private Use Only 125 www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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