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________________ आत्म-विजय की ओर चार क़दम साधना का मार्ग आत्म-विजय का मार्ग है। विजय के दो पहलू हैं- आत्मविजय और विश्व-विजय । युद्ध चाहे आत्म-विजय के लिए हो या विश्व-विजय के लिए, दोनों के लिए ही व्यक्ति का योद्धा रूप चाहिए। बाहर की लड़ाई अपने अंतिम निष्कर्ष में विजय-ध्वज फहराती है और भीतर की लड़ाई अपने उपसंहार में अध्यात्म के उत्कर्ष का आनंद देती है। ब्राह्य विजय तो अन्ततः पराजय में बदलनी ही है पर एक विजय है, जिसमें सबसे परास्त होकर भी व्यक्ति विजेता बन जाना है। एक विजय वह विजय है, जिसमें खून-खराबा, हिंसा करके धरती के नाम पर मिट्टी बटोरता है लेकिन अन्ततः उसी धरती में समा जाता है। विश्व-विजय की कामना से ग्रस्त सिकंदर को अपनी कब्र पर लिखवाना पड़ा था - यहाँ वह विश्व-विजेता सोया हुआ है जो अंतिम समय में अपनी छोटी-सी इच्छा भी पूरी न कर सका। जिसने जीवन भर इकट्ठा किया, लेकिन अंत में खाली हाथ जाना पड़ा। दूसरी विजय वह है जिसमें जीवन महोत्सव बन जाता है। इसमें मृत्यु पर शोक नहीं किया जाता, निर्वाण के रूप में दीपावली मनाई जाती है। ____ बाहरी विजय अहंकार की विजय है, जिसे अन्ततः पराजय में तब्दील होना ही है। आत्म-विजय वहीं से प्रारम्भ होती है, जहाँ अहंकार नष्ट होता है। बाह्य-विजय प्राप्त करके भी क्या पा लोगे अगर स्वयं को न जीत पाए। औरों को देखकर भी क्या देखा अगर स्वयं अनदेखे रह गए। बहुतों को सुनकर भी क्या सुना अगर स्वयं 119 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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