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कुछ श्रेष्ठ ही रहेगा, लेकिन जिसके जीवन में न नियमन है, न शोधन; न माह का पता, न दिन का भान; जब उत्तेजना जगी भोग लिया। सुकरात कहते हैं- मैं नहीं जानता उसे क्या कहा जाए? पशुओं में तो एक ऋतु होती है। मनुष्य की कौन-सी ऋतु होती है? तभी तो मैं कहता हूँ कि मनुष्य पूरा मनुष्य ही बन जाए, इतना पर्याप्त है।
यदि मनुष्य मनुष्य का जन्म लेकर भी पशुता से ही गुजरता रहे, तो यह तो अधःपतन है। ऐसी स्थिति में सूत्र कहता है कि मृत्यु आने पर शोक होगा, पर मैं तो देखता हूँ मनुष्य शोकमग्न रहता है, पीड़ा में जीता है, पीड़ा को बनाए रखता है, पीड़ा को ढकता रहता है। मैं पूछना चाहता हूँ- कब तक बाह्य आवरणों से भीतर के रोगों को ढाँकते रहोगे? जीवन को इस पार ले जाओ या उस पार । अध-बीच में क्या जीना? कुनमुने रहकर क्या जीना? आदमी सागर का पानी चख भी रहा है और खारा है इसलिए छोड़ना भी चाहता है। यही बहिआत्मा की पहचान है कि व्यक्ति अन्तर्द्वन्द्व में जीता है। पर पदार्थ की आसक्ति में जीना ही बहिआत्मा है। स्वयं में जीना अन्तरात्मा में जीना है। वह परमात्मा है जो बाहर और भीतर के द्वैत से ऊपर उठ चुका है।
परमात्मा पर किसी व्यक्ति विशेष का अधिकार नहीं है, हर व्यक्ति परमात्मा है। अपने स्वभाव में आ जाओ, परमात्मा हो गए। अपने स्वभाव से जितने, जैसे, जब दूर हटोगे, परमात्म-पद से, परमात्म-स्वभाव से, परमात्म-आनन्द से विचलित होते जाओगे। स्वयं पर हमारा नियंत्रण होना ही चाहिए। जैसे भोजन तो अवश्य करो, क्योंकि यह शरीर की आवश्यकता है लेकिन कब भोजन करना, कैसे और कितना भोजन करना, यह विवेक तो हमारे भीतर होना ही चाहिए। दिन-रात तो भोजन नहीं कर सकते। अंग्रेजी में शब्द है : 'ब्रेक-फास्ट'। 'फास्ट' का अर्थ है उपवास और 'ब्रेक' का अर्थ है रुकावट; यानी उपवास में रुकावट । रात-भर के उपवास के बाद भोजन करना यानी ब्रेक-फास्ट। ___ सुबह तुम देर से उठे, अपने-आप सूर्योदय के बाद खाने का नियम सध गया, पर अपनी ओर से कोई जागरूकता नहीं है। तुम्हें तो चाय भी बेड पर चाहिए। कुछ तो समझ रखो, तनिक जागरूकता से देखो- पक्षी क्या करता है? उसे भी तो प्यास लगती है पर संयम से सारी रात बिता देता है। कहीं कोई बेचैनी नहीं, सर्प भी तभी फॅफकारता है जब उसे छेडा या सताया जाता है, लेकिन हम जरा-जरा सी बातों पर क्रोध से फुफकारते रहते हैं। जरा सोचो किसका स्तर ऊँचा और कौन गिरा हुआ? जीवन का धर्मशास्त्र आँखों के सामने लिखा है। भले ही आपने धर्मग्रंथों का स्वाध्याय न किया हो लेकिन धर्म तो जगत् के मध्य ही लिखा है। हमारी जागरूकता
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