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के साथ तुमने इतना अन्याय किया है। कैसी अराजकताएँ फैलाई हैं। जीवन एक महान उपलब्धि है। जीवन को परमात्मा का प्रसाद, आशीर्वाद बनाकर जीओ। इसे अन्य किसी के साथ प्रवंचना और धोखे में मत लगाओ। बहिर्गमन बहुत हो गया। हमारी अन्तरात्मा हमें पुकारती है। हमारे भीतर का परमात्मा हमें बुलाता है। अध्यात्म और परमात्मा पर किसी व्यक्ति विशेष का अधिकार नहीं है। यह पूरी लोकतांत्रिक अवधारणा है। हर एक के भीतर परमात्मा की सत्ता और संभावना विराजमान है। आज नहीं तो कल,प्रत्येक को परमात्मा होना ही है। वह दिन पृथ्वी का स्वर्णिम दिन होगा, जब यहाँ रहने वाला हर प्राणी परमात्मा के रूप में विकसित होगा। वह दिन मनुष्य के भाग्य का परम-दिवस होगा, जब हर बीज स्वयं में बरगद होगा, हर पंछी में मुक्ति की उड़ान होगी, हर आत्मा में परमात्मा की सुवास, प्रकाश और स्वाद होगा।
भगवान के सूत्र उन लोगों के लिए सार्थक हैं, जो जीवन के प्रति ईमानदार हैं। स्वयं के प्रति ईमानदार, सत्य प्रामाणिक, निर्भीक और मृदुल हुए बिना कोई भी अपने जीवन में अपूर्वकरण गुण-स्थान को उपलब्ध नहीं कर सकता। सिर्फ परम्परा और रूढ़ि-रीति निभाने से कुछ नहीं मिलेगा। एक मात्र प्रामाणिकता और ईमानदारी ही हमारे जीवन को ऊँचा उठा सकती है। __हमने अपने पुरुषार्थ को कुछ रेशम के धागे बुनने में लगा दिया। आप जानते हैं, लोहे की जंजीरों को तोड़ना बहुत सरल होता है, लेकिन रेशम की जंजीरों को, रेशम के बंधनों को तोड़ना बहुत कठिन होता है। एक दुश्मन से अलग हुआ जा सकता है लेकिन परिवार, माता-पिता, पुत्र-पत्नी के रेशमी धागों से मुक्त होना अत्यन्त दुष्कर है। भगवान कहते हैं कि जिसने जीते-जी स्वयं को राग और आसक्ति से मुक्त कर लिया, वीतरागता में विश्वास हो गया, वह व्यक्ति मृत्यु के द्वार पर पहुँचकर भी मृत्यु से विचलित नहीं होता, अपितु निर्वाण की निर्धूम ज्योति जाग्रत कर लेता है। जो ऐसा नहीं कर पाते, उन्हीं के लिए सूत्र है
तओ कम्म गुरू जन्तू पच्चुपन्न परायणे। __ आ गया एसे अयव्व मरणं तम्मि सोयई।
सूत्र कहता है
भोगो में रत और कर्मों से भारी बना हुआ जीव मृत्यु के समय वैसे ही शोक करता है, जैसे मेहमान के आने पर मेमना।
इसे समझें। कहते हैं किसी व्यक्ति ने एक मेमने को पाला। उसे बहुत ही स्निग्ध और
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