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दूसरा सुझाव है : शान्त-शीतल रहें। मूड और मिजाज का कोई भरोसा नहीं है। वह कब बिगड़ जाये, रंग बदल डाले। ठंडे मिजाज का मालिक होना और सबके साथ शालीनता से पेश आना कषाय-विजय का बेहतरीन सूत्र है।
तीसरा सुझाव है : प्रसन्नचित्त रहें । सुख-दुख, सोना-माटी, नफा-नुकसान, उपेक्षा-अभिनन्दन हर परिस्थिति में प्रसन्नचित्त रहें, अलमस्त रहें। भले ही मनुष्य घर-गृहस्थी के बीच हो, पर इस अलमस्ती के चलते, हम 'फकीरी' को जी जाएँगे।
ग्रन्थि-रहित, शांत और प्रसन्नचित्त रहना समय और परिस्थितियों से ऊपर उठकर जीवन-मुक्ति को अपने-आप में जीने का उपाय है। हमें वह मुक्ति चाहिए, जिसका सुख हम जीते-जी उठा सकें। मुक्ति को हम समय, नियति या भवितव्यता से बाँधकर न बैठ जाएँ। मस्त रहें और मुक्त हो जाएँ। फिर, जो होना है, उसे हो लेने दें। हम मदारी के बंदर न बनें। उस होनहार से अपनी अंतरात्मा को ठीक वैसे ही अलग रखें, जैसे नदिया के किनारे बैठा कोई राहगीर चंचल लहरों का साक्षी बना रहता है।
जैसा कि मैंने समझा है: साक्षी का स्पर्श तथागत का फूल खिला दिया करता है। मरणधर्मा मनुष्य की जीवन-देहरी पर निर्वाण की रोशनी झरे, प्रभु! इससे बड़ा सौभाग्य क्या होगा!
पहले भी कई लोग मुक्त हुए हैं; भगवान् करे फिर मुक्ति के पंख खुलें।
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