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हमारे नसीब में जितना था, हमें मिल गया। अब साँझ ढल गई। अब हम अपने लिये जिएंगे। अपनी शांति के लिए, अन्तरात्मा के लिए, अपनी मुक्ति के लिए जिएँगे। चौबीस घंटे ये क्या मेहनतकशी लगा रखी है, घर से घाट और घाट से घर, यही ज़िन्दगी रह गई है।
ज़िन्दगी को जीना, बिताना और पार लगाने का जो दूसरा सूत्र हो सकता है, उसका नाम है 'संतुलन' अपने जीवन में इतना संतुलन करो कि हर चीज नपी-तुली हो जाए। न तो पूरी तरह गूंगे हो जाओ और न ही दिन भर बड़बड़ाते रहो। जो चुप है, वह दिन भर चुप रहता है और जो बोलता है, वह दिन भर कैंची की तरह जुबान चलाए जा रहा है। बोलो तो ऐसे जैसे किसी को तार भेजते हैं। उसमें हम नपे-तुले शब्द काम में लेते हैं। ऐसे ही शांत, धीर-गंभीर हो जाओ। माधुर्य भरा बोलो। ऐसा बोलो कि बोलना सार्थक हो जाए। खाओ तो भी नपा-तुला, जैसे दवा खाते हो। भोजन ऐसा सात्विक हो कि हमें स्वस्थ रखे,स्फूर्ति दे; न कि बीमार कर दे। जीवन में कुछ ऐसा लचीलापन, कुछ नया अंदाज दे जाए कि हमारा जीवन सफल हो जाए। मौन रहकर भोजन करो, प्रसन्नचित होकर एकाग्रता से, मनोयोगपूर्वक भोजन करो।
हमारा हर काम नपा-तुला हो, खाना, पीना, बोलना-बैठना, सोना सभी। न खराब देखो, न खराब बातों में रस लो। संयमित-सादगीपूर्ण जीवन जीओ। अगर ऐसा होता है, तो समझो व्यक्ति ने घर में रहकर भी श्रमणत्व प्राप्त कर लिया।
तीसरी बात है 'समदर्शिता'। पार होने के लिए तीन सूत्र देता हूँ। पहला सजगता, दूसरा संतुलन व तीसरा समदर्शिता। सबके प्रति समान भाव हो, समान दृष्टि हो जाए, उदार-दृष्टि हो जाए। हमारे लिए सब बराबर हो जाएँ, न कोई अपना, न कोई पराया। सब एक बराबर। तब अगर दुःख आया तो वही बात और सुख आया तो भी वही बात।समदर्शिता का अर्थ इतना ही नहीं कि हर व्यक्ति हर आत्मा के प्रति समदृष्टि हो जाए, वरन् परिस्थितियों के प्रति भी सम हो जाओ, चाहे अच्छी हो या बुरी, सोना या लोहा, नफ़ा या नुकसान, निंदा या स्तुति, हर परिस्थिति में अपने को मस्त बनाए रखो। जो होना था, वही हुआ। उसकी क्या चिंता? जो होना है, वही हो रहा है, उसे होने दो, अपनी ओर से इसमें बाधा मत डालो। तुम रोकना चाहोगे, तब भी रोक तो नहीं सकोगे, फिर क्यों ऐसे प्रयास करते हो। जीवन में शांति को आत्मसात् करने का सबसे अच्छा तरीका भी यही है कि जो हो रहा है, होने दो, हर काम अच्छे के लिए ही हो रहा है। हम हस्तक्षेप से मुक्त हो जाएँ, तटस्थता मक्ति का आधार है। प्रतिक्रियाओं से विरत हो जाएँ। महाप्राणानुभूति में निमग्न हो जाएँ।
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