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आकर्षित और मोहित हो जाता है, तब वह बहिर्गमन करता है। वह बहिरात्मा हो जाता है। यह कार्य वह शरीर द्वारा संपादित करता है। जिसकी यात्रा बाहर की ओर प्रारम्भ हुई है, जिसकी आत्म-चेतना की ऊर्जा बाहर की ओर प्रवाहित रहती है, वे आत्माएँ मूलतः परमात्म-स्वभाव की होते हुए भी बहिआत्माएँ हैं।
जब बहिआत्मा अपनी बाह्य-दष्टि को अन्तर्मखी करती है, तब वह अन्तरात्मा में परिणत होती है। आत्माएँ तीन होती हैं । बहित्मिा का अर्थ ही है कि व्यक्ति ने अपनी निजता का मूल्य खो दिया और किसी पर-वस्तु या विषय को अधिक मल्य दे दिया। जब तुम पर-पदार्थको अधिक मूल्य देते हो, तो वह तुम पर हावी हो जाता है। अन्तरात्मा होने का यही अर्थ है कि दूसरे का मूल्य इतना ही हो जितना कि होना चाहिए। हमसे अधिक अन्य किसी का मूल्य नहीं हो सकता। यहाँ कुछ भी निर्मूल्य नहीं है। लेकिन क्या स्वयं से अधिक मूल्यवान कुछ भी है? घर में आग लग जाए तो सबसे पहले तुम स्वयं को बचाओगे। अपना जीवन ही सर्वाधिक मूल्यवान है। स्वयं के जीवन के समक्ष दुनिया भर की सारी संपदा निर्मूल्य है।
किसी भी पर-वस्तु को स्वयं पर हावी मत होने दो।दूसरों के लिए हमारे मन में सहानुभूति हो, समानुभूति हो, लेकिन उन्हें अपना स्वामी मत बनने दो। कोई अन्य तुम्हारा मालिक बने, इससे पहले तुम स्वयं अपने स्वामी हो जाओ। अन्य कोई किसी व्रत, बंधन या प्रताड़ना से हमें अपने वश में करे, उसके पूर्व ही हम आत्मानुशासन को थाम लें,आत्म-नियंत्रण कर लें।
अन्तरात्मा अर्थात् भीतर की ओर मुड़ना। आँखों के भीतर आँखें खोलकर अन्तर्-जगत् को देखना ही अन्तर्-आत्मा है। जब तक व्यक्ति अन्तर्जगत् में नहीं उतरता, तब तक उसके लिए मूल्य और निर्मूल्य का भेद रहता है, लेकिन भीतर के जगत् में प्रवेश पाते ही, उसका स्वाद पाते ही, आन्तरिक प्रकाश की उज्ज्वलता मिलते ही, वहाँ की सुवास उपलब्ध होते ही, वह अनन्त सुख से भर जाता है। भीतर का प्रेम, आनन्द, मौन और तृप्ति अनूठी है। उसकी सांसारिक वस्तुओं से तुलना नहीं की जा सकती।
जब तक भीतर न उतरे, गहन अंधकार ही दिखाई देता है। बाहर से मनुष्य भले ही कहता रहे कि वह शान्ति में है लेकिन जब तक भीतर अशान्ति जमी हुई है, तब तक बाहर की शान्ति आरोपित है। केवल दो मिनट के लिए आँखें बन्द करो और मन को एकाग्र करने का प्रयास करो। दो मिनट तो हो भी न पाएँगे, उससे पहले ही भीतर-ही-भीतर बातें चलनी शुरू हो जाएँगी।अन्तर्-वार्ता का यातायात इतना तीव्र हो जाएगा कि तुम घबरा जाओगे और आँखें खोल ही दोगे। यह अनर्गल प्रलाप,यह तीव्र शोरगुल अन्य किसी का नहीं, हमारा अपना है । कब तक इस शोरगुल से बचे
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