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________________ रागोवरयं चरेज्ज लाढे , विरए वेयवियायरक्खिए। पन्ने अभिनूय सव्वदंसी, जे कम्हिचि न मुच्छिए स भिक्खू। ___ महावीर कहते हैं भिक्षु कौन है? जो राग से उपरत है, संयम में तत्पर है, आस्रव से विरक्त, शास्त्रविद्, प्राज्ञ, और आत्मरक्षक है, जो सभी को अपने समान देखता है किसी भी वस्तु में आसक्त नहीं होता, वह व्यक्ति भिक्षु है। महावीर ने भिक्षु की जो परिभाषा दी है, उसके जीवन के ये चरण बताए हैं कि वह राग से उपरत है, वह संयम में तत्पर हो चुका है, वह आस्रव से विरक्त हो चुका है, वह सभी को अपने समान देखता है, वह किसी भी वस्तु में आसक्त नहीं होता, मूर्च्छित नहीं होता। ___'भिक्षु' शब्द महावीर का दिया हुआ है। लेकिन बाद में इसे बौद्धों ने भी स्वीकार किया। बोधि, संबोधि और संबुद्ध भी उत्तराध्ययन सूत्र में कई बार प्रयुक्त हुए हैं। लेकिन लोग मानते हैं कि ये बौद्ध-परम्परा के शब्द हैं। हम भूल ही चुके हैं कि महावीर भी उन्हीं शब्दों का प्रयोग करते हैं जो बाद में बौद्धों ने अपनाए। अब शब्दों पर किसी का एकाधिकार तो है नहीं। भाषा तो भाषा है, शब्द भी वहाँ रहते हैं, पर हमारा ध्यान अर्थों की ओर होना चाहिए। अर्थ-गम्भीरता में सारे शब्द स्वीकार कर लो फिर वे चाहे किसी भी परम्परा से आते हों।'सार-सार को गहि रहे थोथा देय उड़ाय।' __एक शब्द है 'भिक्षु' दूसरा है 'भिक्षुक'। भिक्षु का अर्थ होता है मुनि, संत और भिक्षुक से तात्पर्य है भीख माँगने वाला, भिखारी। भिक्षु वह है जो वस्तुओं को त्याग देता है और भिक्षुक त्याग की गई वस्तुओं को स्वीकार करने के लिए लालायित रहता है। इसलिए भिक्षुक का काम है माँगना और भिक्षु का कार्य है लुटाना। एक व्यक्ति जो दिन भर लुटाता है वह रात्रि को सुखपूर्वक सोता है और जो दिन भर बटोरने में लगा रहता है वह रात में शांति से सो भी नहीं सकता। महावीर जैसे लोग अगर वर्षीदान कर रहे हैं तो यही देख रहे हैं कि आज दिन भर मैंने कितना अधिक लुटाया और शाम को जब सोते हैं तो आनन्द की नींद लेते हैं। भीख माँगने वाले लोग, दूसरों से दान की इच्छा रखने वाले लोग जब तक कुछ पा नहीं जाते, न चैन से रोटी खाते हैं, न चैन से सो पाते हैं। जब कोई मेरे पास सहयोग, दान की आकांक्षा से आता है तब मैं उसे स्पष्ट बता देता हूँ कि मैं दान तो नहीं दे सकता, हाँ सहयोग जरूर कर सकता हूँ। सहयोग भी यह नहीं कि मुफ़्त में रोटी खाओ बल्कि यह सहयोग कि तुम मेहनत से काम करके अपनी रोटी कमा सको इसकी व्यवस्था अपने परिचय, अपनी पहुँच से अवश्य करवा सकता हूँ। तुम अपने बाजुओं से कमाकर खाओ, माँग कर नहीं। माँगकर खाना भिखारियों का काम है, 1061 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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