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दफा वर्षों वर्ष का निषेधात्मक चिंतन निरस्त हो जाता
है।
* जीवन से बुराइयों को हटाने के लिए अच्छाइयों को .
कीजिए। जैसे-जैसे हम सकारात्मकता को जीवन से जोड़ने में सफल होते जाएँगे, निराशा, कुंठा और क्रोध हमारे जीवन से स्वतः ० होते जाएंगे। * मन न लगे, तो ध्यान लगाएँ। ध्यान कल्पवृक्ष की तरह है। इसकी सुखद छाँव में मन की सारी उधेड़बुन और
इच्छाएँ स्वंतः शांत और तृप्त हो जाती हैं। * ध्यान में बैठने के लिए शांत वातावरण तलाशिए और यह
संकल्प करते हुए कि मैं स्वयं को भीतर से शांतिमय बना रहा हूँ, बस बाहर की शांति को भीतर लेते जाइए और आती-जाती प्रत्येक साँस का आनंद लेते हुए स्वयं को
शांतिमय बनाते रहिए। " ध्यान की हर बैठक का एक ही लक्ष्य रखिए – 'मैं स्वयं को शांतिमय, आनंदमय बना रहा हूँ।' इस संकल्पबोध को हर बैठक में हर बार प्रगाढ़ करते जाइये।
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